बीगोद– कस्बे के बालाजी चौक में रामलीला मंचन के दौरान सर्वप्रथम गणेश आरती, रामायण आरती कर कलाकारों ने रामलीला की शुरुआत की रामलाल के शुरू में राम केवट संवाद का वर्णन करते हुए
कहा कि भगवान राम 14 वर्ष वनवास के लिए सीता और लक्ष्मण के साथ गंगा घाट पर पहुंचे और केवट से गंगा पार करने के लिए नाव मांगा तो केवट ने कहा, मैं तुम्हारे मर्म जान लिया हूं चरण कमलों की धूल के लिए सब लोग कहते हैं वह मनुष्य बना देने वाली कोई जड़ी है।
पहले पांव धुलवाओ फिर नाव पर चढ़ाऊंगा। जिससे पूरी दुनिया मांगती है आज गंगा पार जाने के लिए दूसरे से मदद मांग रहे हैं, जो सारे सृष्टि को तीन पग में नाप सकता है, क्या वह पैदल गंगा नहीं पार कर सकता। भगवान दूसरों की मर्यादा को समझते हैं, वैसे ही घाट की एक मर्यादा होती है।
भगवान केवट के पास इसलिए आए कि वह हम लोगों से कहना चाहते हैं कि हम लोग बहुत बड़े बड़े लोगों के दरवाजे पर उनके सुख-दुख में जाते रहते हैं। भगवान कहना चाहते हैं कि हमें कभी छोटे लोगों के यहां भी जाना चाहिए। राम केवट कथा सुनने से हमें यह सीख लेनी चाहिए भाव व प्रेम से सुनने वाले ही ज्ञान प्राप्त करते हैं। रामायण का मुख्य रस करुण वास्तव में हृदय में करुणा आ जाए तो वीरता और पराक्रम की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
फिर श्रीरामचंद्रजी ने वनवास के दौरान निवास स्थान के बारे में महर्षि वाल्मीकि से पूछा तो वाल्मीकि ने चित्रकूट पर्वत को सर्वश्रेष्ठ स्थान बताया। चित्रकूट पर्वत के वर्णन को बड़े मार्मिक ढंग से सुनाकर श्रद्धालुओं को भाव-विभोर कर दिया। भरत मिलाप की लीला का मंचन किया गया। जिसमें राजा दशरथ के देहांत के बाद गुरु वशिष्ठ भरत और शत्रुघ्न को ननिहाल से बुलवाते हैं।
जब भरत अयोध्या पहुंचे तो पूरी अयोध्या नगरी शोक में डूबी हुई थी। इस दौरान उन्हें कुछ शंका हुई। जब वे महल में पहुंचे तो उन्हें पूरी घटना पता चली।
जब वे माता कैकेयी के पास पहुंचे तो उन्होंने भरत को अयोध्या का राज संभालने को कहा। तब भरत क्रोध में बोले कि मुझे इस अयोध्या का राजा तो क्या अगर तीनों लोगों का राजा भी बनाओगे तो भी मैं भी ठुकरा दूंगा।
तब गुरु वशिष्ठ ने उनको समझाया और पिताजी का अंतिम संस्कार के लिए कहा। राजा दशरथ के अंतिम संस्कार के बाद गुरु वशिष्ठ भरत को राजपाठ संभालने को कहते हैं। इस पर भरत इनकार कर देते हैं और तीनों माताओं व अयोध्या की सेना साथ लेकर भगवान राम को मनाने वन को निकलते हैं।
भरत को सेना सहित आता देख लक्ष्मण को शंका होती है। तब श्रीराम ने उन्हें समझाते हैं कि भरत जैसा भाई इस दुनिया में हो ही नहीं सकता। इसी दौरान भरत पहुंच जाते हैं। श्री राम उन्हें गले लगा लेते हैं।
चित्रकूट में भगवान राम और भरत का मिलाप हुआ। भरत श्रीराम की चरण पादुका लेकर अयोध्या चले जाते है (फोटो कैप्शन– कैवट चरण धोकर राम को गंगा पार करते)
फोटो प्रमोद कुमार गर्ग