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मंहगाई की आग में ठढे हुए उज्जवला के चूल्हे, पेट्रोल का शतक पूरा

रिपोर्ट अशोक सागर IBN NEWS गोंडा

गोंडा। आसमान छूती पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत से रिकार्ड स्तर पर पहुंची महंगाई के दंश से गरीबों का पेट भरना तक मुश्किल हो गया है। दिन भर हाड़तोड़ मेहनत के बाद मिलने वाली तीन सौ की दिहाड़ी परिवार के भरण पोषण को नाकाफी साबित हो रही है।इतना ही नहीं महिलाओं को लकड़ी के चूल्हे के धुएं से निजात दिलाने के लिए संचालित उज्ज्वला योजना में दिए गए गैल चूल्हे की आग भी एलपीजी सिलेंडर की ऊंची कीमत ने ठंडी कर दी है। दूसरी तरफ पेट्रोल की कीमत के शतक लगाने व नयी ऊंचाई पर पहुंचे डीजल के दाम से बढ़ी माल भाड़ा की बढ़ोत्तरी ने दैनिक खाद्य सामग्री से लेकर शाकभाजी व फलों के बढ़े हुए रसोई गैस सिलिंडर के बढ़ते दामों ने लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। गरीब परिवारों को मुफ्त सिलिंडर तो दे दिए गए, लेकिन गैस के दाम बढ़ने से लाभार्थी इन्हें रीफिल नहीं करा पा रहे । इसके चलते ही अधिकांश गरीब परिवारों ने गैस चूल्हा छोड़ कर फिर लकड़ी-कंडा जलाना शुरू कर दिया है।


डीजल-पेट्रोल व अन्य रोजमर्रा उपयोग होने वाले खाद्य वस्तुओं के दामों में बेतहाशा वृद्धि के चलते मध्यमवर्गीय लोगों को परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है। डीजल ,पेट्रोल,गैस सिलेंडर के बाद दैनिक उपयोगी चीज सरसो तेल, रिफाइंड, दाल के रेट भी आसाम छू रहा है।

तीन सौ रुपया रोज की दिहाड़ी कमाने वाला मजदूर घर गृहस्थी कैसे चलाता होगा इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। रोज कमाने व खाने को दिहाड़ी पर काम करने वाले राजू गुप्ता ने बताया कि दिन में 8 घंटे की हाड़तोड़ मेहनत के बाद शाम को तीन सौ रुपया मिलता है। इसमें से 70 की गैस, 100 की सब्जी मसाला तेल और 100 का राशन निकालने के बाद भी परिवार का भरण पोषण करना मुश्किल होता है। दिन भर की मेहनत की कमाई शाम को सफाचट हो जाती है।

अगले दिन काम न मिला तो पूरे परिवार का भूखे पेट सोना ही मजबूरी होता है। इसी तरह मोनू कुमार, रिंकू, राजेन्द्र कुमार आदि ने बताया कि दिन भर दुकान पर बैठने के बाद घर का खर्चा चल जाये तो बड़ी बात है। जितना कमाता हूं यही खर्च करने के बाद भी कर्जदार बनकर जीना पड़ता है। ऊपर से बैंक का लिया हुआ कर्ज रात भर अलग परेशान कर सोने नहीं देता।बीते चुनावी वर्ष 2017 में घरेलू एलपीजी सिलेंडर पर सरकार की तरफ से 397 रुपया सब्सिडी देकर लोगों को लुुभाया गया था लेकिन इसके बाद गैस सिलेंडर के दाम तो बढ़ते गए लेकिन इस पर मिलने वाली सब्सिडी की राशि लगातार कम होती गई।
साढ़े चार साल में ही यह राशि घटकर 15.31 रुपया तक सिमट गयी है। अक्टूबर माह में कीमत बढ़ने के बाद तो अधिकांश के खातों में नाम मात्र को मिल रही सब्सिडी भी आना बंद हो गयी।

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