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डी.ए.वी शताब्दी महाविद्यालय ने एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का किया आयोजन

 

फरीदाबाद से बी.आर.मुराद की रिपोर्ट

फरीदाबाद:डीएवी सेंटेनरी कॉलेज में तकनीकी परिवर्तन और सतत विकास परिप्रेक्ष्य और चुनौतियां’पर हरियाणा शिक्षा निदेशालय द्वारा प्रायोजित एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन का उद्देश्य प्रतिभागियों व समाज को सतत विकास से जुड़े हुए विभिन्न मुद्दों से अवगत कराना था।प्रो.दिनेश कुमार,कुलपति,गुरुग्राम विश्वविद्यालय,गुरुग्राम,कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि और पद्म भूषण,डॉ.अनिल प्रकाश जोशी,हरित कार्यकर्ता सम्मानित अतिथि थे।डॉ.अजय गांधी,लीडेन विश्वविद्यालय,नीदरलैंड और डॉ.मनोज पटैरिया,पूर्व निदेशक, सीएसआईआर-निस्केयर नई दिल्ली,मुख्य वक्ता थे। कॉलेज की कार्यवाहक प्राचार्या डॉ.सविता भगत ने विशिष्ट अतिथियों का गर्मजोशी से स्वागत किया और अपने वक्तव्य में सतत विकास के प्रति तकनीकी महत्ता के बारे में बताया।

उनके अनुसार वातावरण में जो कुछ भी घटित हो रहा है वह केवल हमारे कृत्यों का परिणाम है। साथ ही उन्होंने सीमित तकनीकी उपकरणों द्वारा जीवाश्म,ईंधन,पर्यावरण और प्रकृति के प्रति योगदान की बात भी कही। सतत विकास के लिए जीडीपी के बजाय जीईपी यानी सकल पर्यावरण उत्पाद पर ध्यान देना समय की मांग है। इस कांफ्रेंस में 6 देशों से और विभिन्न राज्यों से लगभग २०० प्रतिभागियों ने भाग लिया। सिंगापुर,कनाडा,लंदन,न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया और जर्मनी और भारतीय राज्यों में हरियाणा,उत्तर प्रदेश,राजस्थान,दिल्ली,कर्नाटक,भोपाल आदि से शोधार्थी शामिल रहें। उद्घाटन सत्र की शुरुआत को चिह्नित करने के लिए,डॉ.सविता भगत और सम्मानित अतिथियों ने एक सुरक्षित भविष्य के लिए सतत अभ्यास-समय की आवश्यकता”पर एक पुस्तक का विमोचन किया।पद्म भूषण सम्मानित डॉ.अनिल प्रकाश जोशी ने अपने संबोधन में कहा कि मानव समाज ने विज्ञान एवं तकनीक को केवल अपने लालच की पूर्ति के लिए ही प्रयोग किया है।

उन्होंने कहा कि मनुष्य ने प्रकृति को दरकिनार करते हुए विज्ञान को मानव केन्द्रित बना दिया है। उनके अनुसार मानव समाज ने प्रकृति के लिए कभी कोई योगदान नहीं दिया,अपितु प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन कर प्रकृति का संतुलन बिगाड़ दिया है। मुख्य अतिथि प्रो.दिनेश कुमार ने पर्यावरण और इसके सतत विकास के प्रति प्रत्येक मनुष्य के योगदान की बात कही। उन्होंने कहा कि प्रकृति में हो रहे बाढ़,आग और बर्फ पिघलने जैसे असंतुलन के लिए केवल मनुष्य जिम्मेदार हैं। उन्होंने दैनिक गतिविधियों के लिए सौर ऊर्जा के उपयोग पर बल दिया ताकि सामान्य क्रियाकलाप के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम किया जा सके और इससे उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड,मोनोऑक्साईड आदि हानिकारक गैसों से मानव और प्रकृति को क्षति न हो। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस क्षेत्र में थोड़ा सा योगदान एक बड़ा बदलाव ला सकता है। डॉ.अजय गांधी ने अपने ऑनलाइन विचार-विमर्श में कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी को पारिस्थितिकी से जोड़ने का यह सही समय है।

उन्होंने कहा कि जलवायु में उतार-चढ़ाव पृथ्वी पर जीवन को खतरे में डाल रहा है। उन्होंने रवींद्र नाथ टैगोर की कविताओं की कुछ पंक्तियों का पाठ किया। जिसके माध्यम से उन्होंने सतत विकास के लिए एक आधुनिक दृष्टिकोण दिया है।डी.वी.सेठी,कोषाध्यक्ष,डीएवी कॉलेज प्रबंध समिति,नई दिल्ली ने अपना आशीर्वाद देते हुए कहा कि हमें इस पर विचार करना चाहिए कि हम प्रकृति को कैसे बनाए रख सकते हैं। उन्होंने सलाह दी कि हमें अपनी अगली पीढ़ी को बेहतर भविष्य देने के लिए अपने संसाधनों का सावधानीपूर्वक उपयोग करना चाहिए। रजनी टुटेजा एवं सुमन तनेजा ने मंच संचालन किया।

सम्मेलन में तीन तकनीकी सत्र थे जो एक साथ हुए। पहला और दूसरा तकनीकी सत्र ऑफलाइन मोड के माध्यम से आयोजित किया गया था और तीसरा सत्र ऑनलाइन चला जिसमें विभिन्न देशों के प्रतिभागियों ने उत्साह पूर्वक भाग लिया। इन सत्रों में लगभग 150 गुणवत्तापूर्ण शोधपत्र प्रस्तुत किए गए। तीनों तकनीकी सत्रों की अध्यक्षता प्रोफेसर शिखा गुप्ता,शहीद भगत सिंह कॉलेज,दिल्ली विश्वविद्यालय,डॉ.किशोर कुमार, क्राइस्ट यूनिवर्सिटी,बेंगलुरु और डॉ.रेखा सिंह,डायरेक्टर और लीड कंसल्टेंट,ग्रीन अर्थ केयर,कंसल्टेंट प्रा.लिमिटेड ने की। सेमिनार में सऊदी अरब,ऑस्ट्रेलिया,यूएसए, न्यूजीलैंड,यूके,कनाडा,जर्मनी, नीदरलैंड आदि देशों के प्रतिभागियों ने भाग लिया।

समापन सत्र में प्रो.एस.सी.शर्मा, निदेशक,आईबीएस गुरुग्राम,सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। डॉ.माइकल सोनेलिटनर,संयुक्त राज्य अमेरिका के ओरेगन में पोर्टलैंड कम्युनिटी कॉलेज बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के सदस्य कार्यक्रम में विशेष अतिथि थे। प्रो.प्रमोद कुमार दुबे विशिष्ट अतिथि थे। डॉ.अर्नेस्ट आर.कैडोटे,टेनेसी विश्वविद्यालय,संयुक्त राज्य अमेरिका और डॉ.विपिन शर्मा, संकाय और निदेशक,जजान विश्वविद्यालय,सऊदी अरब, समापन सत्र में मुख्य वक्ता थे। प्रो.एस.सी.शर्मा ने अपने विचार-विमर्श में भारत की समृद्ध संस्कृति के बारे में बात करते हुए कहा कि हमारी संस्कृति में सतत विकास निहित है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज प्रौद्योगिकी की अत्यधिक आवश्यकता है, इसलिए हमारी भारतीय संस्कृति और प्रौद्योगिकी का समामेलन हमारे जीवन स्तर में जबरदस्त बदलाव ला सकता है।

उन्होंने गुरु नानक देव,बुद्ध और महावीर का उदाहरण भी दिया और साझा किया कि उन्होंने हमें यह भी सिखाया कि सुरक्षित भविष्य के लिए अपने संसाधनों का संरक्षण कैसे करें। गांधीवादी दर्शन के प्रबल अनुयायी डॉ.माइकल सोननेलिटनर का मानना ​​है कि हम अपनी व्यक्तिगत और साथ ही अपनी व्यावसायिक भूमिकाओं में सत्याग्रह का अभ्यास कर सकते हैं। अपने ऑनलाइन भाषण में उन्होंने कहा कि हमें यह देखना चाहिए कि तकनीक हमें चला रही है या हम प्रौद्योगिकी को चला रहे हैं। प्रो. दुबे ने अपने उद्बोधन में कहा कि प्रकृति में दैवीय शक्ति है और हमारी ऊर्जा ब्रह्मांड में फैली हुई है। उन्होंने कहा कि आधुनिक विज्ञान ने हमारे जीवन को खतरे में डाल दिया है इसलिए हमें अपने प्राचीन भारतीयता से सतत विकास के पारंपरिक तरीकों को सीखना चाहिए। अपने मुख्य भाषण में,डॉ.कैडोटे ने लाभ की खोज के बारे में बात की जो अक्सर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही है।

डॉ.विपिन शर्मा ने अपने ऑनलाइन भाषण में कहा कि हमें एक जागरूक समाज के निर्माण पर ध्यान देना चाहिए जहां हम सभी को यह सिखाएं कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को सुरक्षित भविष्य देने के लिए अपनी ऊर्जा को कैसे नवीनीकृत करें। सुश्री दीपिका,विपिन,सुश्री कामिनी सिंघल और प्रशांत कुमार को सर्वश्रेष्ठ शोधपत्र प्रस्तुतिकरण पुरस्कार दिया गया। इसी कड़ी में डॉक्टर युगल झा की पुस्तक अबुआ राज की चुनौतियों का भी लोकार्पण किया गया। रेखा शर्मा ने सभी सम्मानित अतिथियों एवं गणमान्य व्यक्तियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। इस कॉन्फ्रेंस के संयोजक प्रोफेसर नरेंद्र दुग्गल एवं रेखा शर्मा रहे।

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