मनीष दवे IBN NEWS
भीनमाल :- सामान्यतः हम मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाते है परंतु वास्तविकता यह है कि सूर्य 21-22 दिसम्बर को ही मकर में प्रवेश कर जाता है। सामवेदी
वैभव त्रिवेदी ने बताया कि सायन सूर्य मकर राशि में 22 दिसम्बर को प्रातः 08.58 पर प्रवेश करेगा। ज्योतिष में गणित की दो प्रकार की विधियां प्रचलित है-सायन और निरयन।
सायन गणित भारत को छोड़कर पूरे विश्व में अपनायी जाती है। साथ ही यह प्रत्यक्ष गणित है। इस गणित में लाखों वर्षों के बाद भी किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता है। परन्तु भारतीय निरयन पद्धति में सूर्य व पृथ्वी के अंतराल को अयनांश रूप में गिनते है। पृथ्वी अपनी धूरी पर घूमते हुए प्रतिवर्ष 55 विकला अथवा करीब 72 से 90 वर्षों में एक अंश पीछे रह जाती है।
ईस्वी सन् 285 में अयनांश शून्य था उस समय भारत में भी मकर संक्रांति 21 दिसम्बर को मनाई जाती थी। चूंकि उस समय निरयन व सायन गणित से 21 दिसम्बर को रवि उत्तरायण में प्रवेश करता था। परन्तु दोनों गणित में प्रति वर्ष अंतर बढ़ता जा रहा है जो वर्तमान में लगभग 24 अंश हो चूका है। और लगभग आज से 700 वर्ष बाद 34 हो जाएगा तब हम मकर संक्रांति 24 जनवरी को मनाएंगे। चूंकि करीब 72 वर्षों में तीन पीढ़ियां गुजर जाती है तथा वर्तमान में पिछले लगभग 72 वर्षों से 14 जनवरी को मकर संक्रांति मना रहे है अतः हम उसे स्थायी तारीख की संज्ञा देने लगे है। जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है।
वास्तव में सूर्य धनु से मकर में नहीं जाता, सूर्य हमें यहाँ से ऐसा करता दिखता है। दिखना सापेक्षता है, यह पृथ्वी से तय होता है और इसी दिन से शिशिर ऋतु प्रारंभ होती है। त्रिवेदी ने बताया कि संक्रांति को समझने का प्रयत्न करते है कि क्रान्ति शब्द में लाँघने का भाव है। किसी ने कुछ लाँघा और क्रान्ति हो गयी। फिर जब यही लाँघना सम्यक् ढंग से हुआ , तो सम़् योग क्रान्ति = संक्रान्ति हो गयी। उत्तरायण और दक्षिणायन को समझने के लिए उत्तर-दक्षिण को समझना होगा सामान्यतः ऐसा सूर्य के उगने-डूबने की दिशाओं से तय है।
सामान्य लोग सूरज के उगने-डूबने से पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण तय करते हैं , जबकि दिशाओं से सूरज का उगना-डूबना तय होता है। पूर्व-पश्चिम नहीं बदलते, सूरज का उगना-डूबना बदल जाता है।
सामवेदी ने बताया कि सूर्य प्रतिदिन एकदम पूर्व से न तो उगता है और न पश्चिम में डूबता है। वह ऐसा केवल दो दिनों में ही करता है। वह है-इक्कीस मार्च और इक्कीस सितम्बर।
इक्कीस मार्च के बाद से सूर्य रोज धीरे-धीरे पूर्व से खिसक कर उत्तर की ओर बढ़ता जाता है, यानी वह दरअसल पूर्व में न उग कर थोड़ा-थोड़ा उत्तर-पूर्व में उगता है। ऐसा करते-करते इक्कीस जून आ जाता है, जिस दिन सूर्य सर्वाधिक पूर्वोत्तर में उगता है। फिर वह वापस सटीक पूर्व की ओर लौटना शुरू करता है। यही दक्षिणायन है। दक्षिणायन यानी जब सूर्योदय दक्षिण की ओर बढ़ने लगे।
इक्कीस सितम्बर को सूर्य वापस ठीक पूर्व में उगता है और उसके बाद दक्षिण की ओर उगना शुरू कर देता है। हर दिन उसे उगता देखने पर वह थोड़ा दक्षिण-पूर्व में उगता मालूम देगा।
ऐसा करते-करते इक्कीस दिसम्बर आ जाता है। उस दिन सूर्य सबसे अधिक दक्षिण-पूर्व में उगा होता है। फिर अगले दिन से वह वापस पूर्व की ओर लौटने लगता है और इक्कीस मार्च को ठीक पूर्व में उगता है।
तो फिर संक्रान्ति तो इक्कीस दिसम्बर को हो गयी। उत्तरायण तो तभी से आरम्भ हो गया। इक्कीस दिसम्बर से ही सूर्य दक्षिण से लौटने लगा।
त्रिवेदी ने बताया कि सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा नहीं करता , बल्कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है। जिस पथ पर वह सूर्य के चारों ओर घूमती है, वह क्रान्तिवृत्त कहलाता है।
लेकिन वह अपने अक्ष पर लगभग साढ़े तेईस डिग्री झुकी हुई भी है। यह झुकाव ही सर्दी-गर्मी और अन्य ऋतुओं का मूल है। पृथ्वी को बीचों-बीच किसी सन्तरे या गेंद की तरह अगर काटा जाए , तो जो वृत्ताकार तल बनता है उसे बड़ा कर दीजिए। आपको एक बड़ा गोल तल मिलेगा जिसे भूमध्य-वृत्त कहते हैं। चूँकि पृथ्वी अपने अक्ष पर तिरछी है , इसलिए जाहिर है यह भूमध्य-वृत्त भी तिरछा है। यानी पृथ्वी के क्रान्ति-वृत्त और इस भूमध्य-वृत्त के बीच लगभग साढ़े तेईस अंशों का कोण है। पृथ्वी का यह क्रान्ति-वृत्त ही बारह राशियों में प्राचीन ज्योतिषियों-खगोलज्ञों ने बाँटा। उन्हें बारह नाम दिये। जिन्हे बारह राशि के नाम से सभी जानते है।