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सूर्यग्रहण और उससे जुड़ी पौराणिक कथा

 

लेखक- पं.अनुराग मिश्र “अनु”

इस वर्ष का पहला सूर्यग्रहण ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष अमावस्या के दिन तदनुसार 10 जून 2021 को ब्रहस्पतिवार के दिन पड़ने वाला है,यह इस वर्ष लगने वाले दो सूर्य ग्रहण में से पहला है,दूसरा सूर्य ग्रहण दिसंबर माह में पड़ेगा ! इस बार ग्रहण के दिन 10 जून ब्रहस्पतिवार को वट सावित्री व्रत व शनि जयंती जैसे पर्व भी हैं। यह ग्रहण वृषभ राशि और म्रृगशीर्षा नक्षत्र में लग रहा है। इसलिए इस ग्रहण का प्रभाव सभी राशियों पर भी होगा ! यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, इसलिए हिन्दू मान्यता के अनुसार इस ग्रहण का सूतक काल भी भारत में मान्य नहीं होगा ।

सनातन हिन्दू धर्म में सूर्यग्रहण व चन्द्रग्रहण के विषय में अत्यंत पौराणिक मान्यतायें जुडी हुई है ! हिन्दू धर्मशास्त्रों में सहस्त्रों वर्षों से प्रचलित मान्यता के अनुसार सूर्यग्रहण की कथा  समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। यह कथा भागवत महापुराण, महाभारत,विष्णु पुराण एवं स्कन्दपुराण में भी आती है। समुद्र मंथन के समय 14 रत्न निकले जिनमे सबसे अंत में भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए किन्तु अमृत कलश को देखते ही दानवों ने  धन्वन्तरि के हाथ से अमृत कलश को छीन लिया और सभी दानव पहले अमृत पीने की लालच में आपस में ही लड़ने लगे। देवताओं के पास महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण इतनी शक्ति नहीं रही थी कि वे दैत्यों से लड़कर उस अमृत को ले सकें इसलिये वे निराशभाव से खड़े होकर दानवों को आपस में लड़ते देखते रहे ।

देवताओं की ये निराशाजनक स्थिति और दानवों को अमृत के लिये झगड़ते देखकर श्रृष्टि के पालक श्रीहरि: भगवान विष्णु से रहा नहीं गया और वे उसी समय  मोहिनी रूप धारण कर आपस में लड़ते दैत्यों के पास जा पहुँचे । भगवान विष्णु का वो विश्वमोहिनी रूप देखकर दानवों और देवताओं की तो बात ही क्या, स्वयं कामदेव को भस्म करने वाले कालों के भी काल भगवान महादेव  भी उस समय विष्णु जी की माया के वश में मोहित होकर उनकी ओर मंत्रमुग्ध होकर देखने लगे । जब दानवों ने भगवान शंकर को भी मोहित करने वाली उस परम सुन्दरी को अपनी ओर आते हुये देखा तब वे अपना सारा झगड़ा भूल कर उस सुन्दरी की ओर कामातुर होकर देखने लगे।

मोहिनी रूप धरे भगवान विष्णु ने अपनी माया से दानवों को अपने बस में कर लिया और उनके हाथ से अमृत कलश लेकर सबकी सहमति से दानवों और देवताओं दोनों को अमृत पान कराने का बीड़ा खुद उठा लिया ! दानवों और देवताओं को दो अलग-अलग पंक्तियों में बिठा दिया गया !

 

उसके बाद मोहिनी रूप धरे भगवान दानवों को अपने मादक कटाक्षों के मोहपाश में बांधकर सिर्फ देवताओं को अमृतपान कराने लगे. दैत्य उनके कटाक्ष से ऐसे सम्मोहित हुए कि अमृत पीना भूलकर उनके उस मोहिनी रूप में ही खो गए लेकिन भगवान विष्णु की इस चाल को  राहु नामक दैत्य समझ गया और वह देवताओं का रूप धारण करके देवताओं के साथ जाकर बैठ गया और अपनी बारी आने पर उसने अमृत मिलते ही अपने मुँह में डाल लिया,अमृत उसके गले तक ही पहुंचा था तभी  चन्द्रमा और  सूर्य ने विष्णु भगवान को पुकार कर कहा कि ये राहु दैत्य है और इसने हमसे छल करके अमृत पी लिया है ! यह सुनते ही भगवान विष्णु ने तत्काल अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर उसकी गर्दन से अलग कर दिया। अमृत के प्रभाव से उसके सिर और धड़  राहु और केतु नाम के दो ग्रह बन कर अन्तरिक्ष में स्थापित हो गये । इसी असुर का सिर वाला हिस्सा राहु और धड़ वाला भाग केतु के नाम से प्रसिद्ध हुआ !

 

इस घटना के बाद से ही राहु – केतु नामक वो दैत्य सूर्य व चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं इसीलिए वह पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को और अमावस्या के दिन सूर्य को निगलने की कोशिश करते रहते हैं किन्तु जब वह सफल नहीं हो पाते और कुछ समय तक दोनों को निगलने की लगातार कोशिश करते रहते हैं तो उसी खगोलीय घटना को सनातन हिन्दू मान्यता के अनुसार सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण कहा जाता है !

 

भारतीय धर्म ग्रंथों में भी सूर्यग्रहण के बारे में स्कंद पुराण के अवंतीखंड में विशेष रूप से बताया गया है !स्कंद पुराण के अवन्तीक्षेत्र महात्मय खंड की कथा के अनुसार समुद्र मंथन से निकले अमृत का वितरण उज्जयिनी (उज्जैन) के महाकाल वन में हुआ था। भगवान विष्णु ने यहीं पर मोहिनी रूप धारण कर देवताओं को अमृत पान कराया था। यही पर एक राहु नामक दैत्य ने देवताओं का रूप धारण कर अमृत पान कर लिया था। तब भगवान विष्णु ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया था किन्तु अमृत पीने के कारण उसके शरीर के दोनों भाग जीवित रहे और राहु और केतु के रूप में जग प्रसिद्ध हुए।

वहीँ आज के वैज्ञानिक युग में भी सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण को एक दुर्लभ खगोलीय घटना माना जाता है ! भौतिक विज्ञान के अनुसार जब सूर्य व पृथ्वी के बीच में चन्द्रमा आ जाता है तो चन्द्रमा के पीछे सूर्य का प्रतिबिम्ब कुछ समय के लिए ढक जाता है और  इसी घटना को सूर्यग्रहण कहा जाता है । पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है और चन्द्रमा पृथ्वी की । कभी-कभी चन्द्रमा,सूर्य और पृथ्वी के बीच में  आ जाता है जिससे  वह सूर्य का ज्यादातर प्रकाश रोक लेता है जिससे पृथ्वी पर अँधेरा फैल जाता है। इस घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है । यह घटना हमेशा  अमावस्या के दिन ही होती है।

 

 

नोट-ये लेखक की मौलिक रचना है,इस लेख के सर्वाधिकार लेखक के पास सुरक्षित हैं

 

 

 

 

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