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रक्षाबंधन: रक्षाबंधन राखी का अटूट बंधन

रक्षाबंधन”
राखी का अटूट बंधन,
ऐसे महके जैसे चंदन।
कहने को तो बस एक धागा है ,
पर आजीवन रक्षा का वादा है।
रक्षा का ये पावन बंधन,
रक्षाबंधन कहलाता है।
ये कल्,
परसो से बना नही इसका इतिहास पुराना है।
सतयुग से ये प्रारंभ हुआ, था दैत्य जरासन का पुत्र बलि ,
उससे थी सब दुनियां हिली।
किए उसने सौ-सौ अश्वमेघ ,अब स्वर्गलोक की बारी आई
इंद्रासन तक डोल गया।
मां लक्ष्मी ने तब बलि को बांधी राखी
और अपना भाई बनाया था
और स्वर्ग का राज बचाया था।
जब आया द्वापर कृष्णकाल,
द्रौपदी ने कृष्ण को भाई कहा
और रक्षासूत्र में बांध लिया।
इस बंधन की महिमा समझो ,
जब हुआ द्रौपदी चीर हरण कृष्ण ने चीर बढ़ाया था।
द्रौपदी की लाज बचा करके अपना भाई धर्म निभाया था।
तबसे ये बंधन पावन है ,
लगता सबको मनभावन है।
राखी की शान निराली है ,
जो रिश्तों की करती रखवाली है।
हर भाई इसका दीवाना है,
हर बहना इसकी मतवाली है।
राखी की शान निराली है ,
राखी की शान निराली है।।
कवियित्री-रागिनी विवेक त्रिपाठी
(स. अ.) पूर्व मा.वि. गोहरामऊ,काकोरी,लखनऊ

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