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राममंदिर निर्माण में मील का पत्थर थे कल्याण सिंह

 

 

भारतीय राजनीति के इतिहास में शायद ही कोई ऐसा नेता हो जिसने अपना धर्म निभाने के लिए स्वयं ही अपनी सरकार का बलिदान कर दिया हो,उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे स्व. कल्याण सिंह एक ऐसा ही नाम हैं जिनके समान शायद ही भारतीय राजनीती में दूसरा कोई व्यक्तित्व हुआ हो I जब भी हम कल्याण सिंह की बात करते हैं तो हमारे मस्तिष्क में स्वतः ही 1990 के दशक में राममंदिर आन्दोलन की छवि आ जाती है I

उस समय कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और उनके ऊपर कांग्रेस की केंद्र सरकार का जबरदस्त दबाव था,क्योंकि केंद्र सरकार नहीं चाहती थी कि जिस तरह 30 अक्टूबर और 2 नवम्बर को 1990 को जब प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी तब जो हालात अयोध्या में राम मंदिर आन्दोलन को लेकर बने थे और अंततः मुलायम सिंह यादव ने मुस्लिमों का दिल जीतने के लिए कारसेवकों पर अंधाधुंध गोलियां चलवाने का आदेश देकर हजारों हिन्दुओं की हत्या करवाई थी वो हालात दोबारा बनें I


1991 के मध्यावधि चुनावों में गैर भाजपा दलों ने उस समय के सबसे बड़े मुद्दे रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले से दूरी बनाने में ही अपना फायदा देखा किन्तु बीजेपी ने इस मुद्दे पर ही चुनावों में जाने की घोषणा की,उसने रामलला “हम आयेंगे मंदिर वहीँ बनायेंगे” और “जयश्रीराम” के नारे लगाते हुए पूरे देश में चुनाव प्रचार किया I भाजपा देश की अकेली ऐसी राजनैतिक पार्टी थी जिसने खुल कर राममंदिर का समर्थन किया I जिसका परिणाम ये हुआ कि उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में 1989 के लोकसभा चुनावों के मुकाबले 25-25 प्रतिशत अधिक वोट बीजेपी को मिले और उत्तर प्रदेश में तो इतिहास ही बन गया,भाजपा को 1991 में उत्तर प्रदेश में 425 में से 221 सीटें मिली थीं I रामजन्मभूमि आन्दोलन का खुल कर समर्थन करने के कारण 6 जून 1991 को प्रदेश में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री के रूप में कल्याण सिंह ने शपथ ली I मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद कल्याण सिंह पूरे मंत्रिमंडल के साथ अयोध्या गए और वहां उन्होंने कहा- “सौगंध राम की खाते हैं, हम मंदिर यहीं बनायेगे” ।


कल्याण सिंह ऐसे समय मुख्यमंत्री बने थे जिस समय राममंदिर आन्दोलन अपने चरम पर था और हर मुख्यमंत्री के लिए वर्तमान अयोध्या की जटिल परिस्तिथियों में विवादित ढांचे की सुरक्षा किसी अग्नि-परीक्षा से कम नहीं थी I अयोध्या में हालात दिन-प्रतिदिन जटिल होते जा रहे थे I 6 से 8 जुलाई 92 को अयोध्या में मार्गदर्शक मंडल की एक बैठक हुई जिसमे कल्याण सिंह सरकार के कामों को लेकर गंभीर चर्चा हुई, बैठक में गोपालस्वामी महाराज का कहना था कि उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले एक वर्ष में कोई विशेष कार्य नहीं किये,हमने फैजाबाद को साकेत,इलाहाबाद को प्रयाग और लखनऊ को लक्ष्मणपुर करने का प्रस्ताव दिया था किन्तु आज तक कुछ नहीं हुआ, विश्व हिन्दू परिषद् के अध्यक्ष अशोक सिंघल ने भी प्रथम दृष्टया ये स्वीकार किया कि इस प्रकार का विचार संतों के मन में बड़े जोर से चल रहा है,तब महंत अवैधनाथ ने कहा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने मंदिर पुनर्निर्माण की दिशा में आने वाली सभी कठिनाइयों को दूर करने का संतों को जो आश्वासन दिया था उन्होंने इस दिशा में सक्रिय और साहसी कदम उठाये हैं I आचार्य अविचलदास का कहना था कि उत्तर प्रदेश सरकार ने एक वर्ष में जो भी कार्य किये उसके लिए वो बधाई की पात्र है क्योकि पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने जो कमीशन अयोध्या प्रकरण की जाँच के लिए बनाया था कल्याण सिंह ने उसे ही रद्द कर दिया I

जुलाई से 6 दिसंबर 92 के बीच कल्याण सिंह सरकार ने एक-एक दिन गिन-गिनकर काटे I अंतत वो ऐतिहासिक दिन आ ही गया जब बीजेपी और विश्व हिन्दू परिषद् के आह्वाहन पर 6 दिसंबर 92 को लाखों कारसेवक श्रीराम मंदिर के लिये कारसेवा करने अयोध्या पहुँच चुके थे केंद्र सरकार को डर था कि कहीं स्तिथि इतनी न बिगड़ जाये कि विवादित ढ़ाचे को कोई नुकसान पहुंचे इसलिए केंद्र सरकार ने कल्याण सिंह सरकार को अतिरिक्त केंद्रीय बल भेजने के लिये भी कहा किन्तु कल्याण सिंह ने इसके लिए मना कर दिया लेकिन अदालत के हस्तक्षेप के बाद उन्होंने अदालत में अपनी सरकार की तरफ से हलफनामा दिया कि वे स्तिथि को बिगड़ने नहीं देंगे, दूसरी तरफ उन्होंने तत्कालीन उत्तर प्रदेश पुलिस के महानिदेशक एस.एम. त्रिपाठी और सभी बड़े अधिकारीयों को खुला निर्देश भी दे दिया कि 6 दिसमबर 1992 को स्तिथि चाहे जो भी बने किन्तु पुलिस कारसेवकों पर एक भी गोली नहीं चलायेगी I

6 दिसंबर, 1992 की दोपहर कल्याण सिंह अपने निवास स्थान 5 कालिदास मार्ग पर अपने दो मंत्रिमंडलीय सहयोगियों लालजी टंडन और ओमप्रकाश सिंह के साथ एक टेलिविजन के सामने बैठे हुए थे उनके साथ मुख्यमंत्री के कमरे के बाहर उनके प्रधान सचिव योगेंद्र नारायण भी मौजूद थे,वहाँ मौजूद सब लोगों को भोजन परोसा जा रहा था तभी अचानक सबने टेलीविजन पर देखा कि कई कारसेवक विवादित ढांचे के गुंबद पर चढ़ गए और कुदालों से उसे तोड़ने लगे,हांलाकि वहाँ पर्याप्त संख्या में अर्ध सैनिक बल तैनात थे, लेकिन कारसेवकों ने उनके और बाबरी मस्जिद के बीच एक घेरा सा बना दिया था, ताकि वो सुरक्षा बल वहाँ तक पहुंच न पायें I

उस समय कल्याण सिंह के प्रधान सचिव रहे योगेंद्र नारायण के अनुसार मुख्यमंत्री निवास पर उस समय उत्तर प्रदेश पुलिस के महानिदेशक एस.एम. त्रिपाठी भागते हुए आये और उन्होंने मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से तुरंत मिलने की अनुमति मांगी,जब मैंने अंदर संदेश भिजवाया तो मुख्यमंत्री ने उन्हें भोजन समाप्त होने तक इंतज़ार करने के लिए कहा, थोड़ी देर बाद जब एस.एम.त्रिपाठी अंदर गए तो उन्होंने तुरंत ही कल्याण सिंह को अयोध्या की स्तिथि की गंभीरता बताते हुए कारसेवकों पर गोली चलाने की अनुमति मांगी, ताकि विवादित ढांचे को गिरने से बचाया जा सके, किन्तु जरा भी विचलित हुए बिना कल्याण सिंह ने उनसे पूछा कि अगर गोली चलाई जाती है तो क्या बहुत से कार सेवक मारे जाएंगे ?
त्रिपाठी ने जवाब दिया, जी हाँ,बहुत से लोग मरेंगे I

तब कल्याण सिंह बोले, कि ‘मैं आपको गोली चलाने की अनुमति नहीं दे सकता, आप दूसरे तरीकों जैसे लाठीचार्ज या आँसू गैस से हालात पर नियंत्रण करने की कोशिश करिये I योगेंद्र नारायण आगे कहते हैं, डीजीपी ये सुन कर वापस अपने दफ़्तर लौट गये, जैसे ही विवादित ढांचे की आखिरी ईंट गिरी, कल्याण सिंह ने अपना राइटिंग पैड मंगवाया और अपने हाथों से अपना त्याग पत्र लिखा और उसे ले कर खुद राज्यपाल के यहाँ अपना इस्तीफा देने पहुंच गए I

देश की राजनीति में स्व.कल्याण सिंह ऐसे पहले मुख्यमंत्री थे जो किसी गोलीकांड या घटना के लिए अफसरों को बलि का बकरा बनाने के बजाय खुद को जिम्मेदार मानते थे, वो भी लिखित तौर पर और उसके लिए सजा पाने को भी तैयार थे। सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर भी जब वे अयोध्या में 6 दिसम्बर 1992 को विवादित ढांचे को गिरने से नहीं रोक पाये तब वे सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एक दिन की सजा काटने के लिए तिहाड़ जेल गये और उन्होंने अपने बयान में ये भी कहा कि मुख्यमंत्री के तौर पर खुद उन्होंने अपने अफसरों को कहा था कि वे कारसेवकों पर गोली नहीं चलायें। भारतीय राजनीति में कल्याण सिंह जैसा मुख्यमंत्री शायद ही कोई हुआ हो या फिर भविष्य में हो क्योंकि यदि उस दिन कल्याण सिंह ने कारसेवकों पर गोलियां चलवाने का आदेश दे दिया होता तो शायद हम आज भी श्रीराममंदिर का निर्माण देखने के लिये सुप्रीम कोर्ट से निर्णय का ही इंतजार कर रहे होते I

लेखक- पं. अनुराग मिश्र “अनु”

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