मुदस्सिर हुसैन IBN NEWS
मवई (अयोध्या)आखिर वो दिन आ ही गया जिसका एक साल से बेसब्री से मुस्लिमों को इंतजार था।यही वो मुकद्दस दिन है जिसके लिए मुसलमान साल भर इंतजार करते हैं। नए कपड़े पहनकर खुशबू लगाकर मस्जिद जाते हैं।अल्लाह की बारगाह में सिर झुका कर दुआ करते हैं कि ए परवरदिगार तू हमारी इबादत को कुबूल फरमा।हमारे कबीरा सगीरा गुनाहों को बख्श दे।इस मुकद्दस दिन का नाम है जुमा अलविदा जो रमजान मुबारक का आखिरी जुमा कहलाता है।इसे छोटी ईद भी कहा जाता है।
कुरआन और हदीस में इस मुकद्दस दिन की बड़ी एहमियत बयान की गई है।फरमाया है कि इस दिन एक जगह इकट्ठा होकर एक दूसरे से मुहब्बत से पेश आओ।एक जगह इकट्ठा होने से आपसी मोहब्बत की मिशाल पेश होगी।इसके साथ ही दुनियां में रहने वाले सभी की सलामती के लिए दुआ करो और आपसी इत्तहाद की बेजोड़ मिसाल कायम करो ताकि तुम से तुम्हारा रब खुश हो जाए।
फरमाया कि जुमा अलविदा पर बजमाअत नमाज का सवाब दीगर नमाजों से 70 गुना अधिक है।इस लिए हुक्म हुआ है कि हफ़्ते में एक दिन सभी मुसलमानों को एक जगह इकट्ठा होकर नमाज अदा करना चाहिए।इस पर रोशनी डालते हुए मौलाना कामिल हुसैन नदवी फरमाते हैं कि जुमे की बजमाअत नमाज अदा करने पर आला दर्जे का सवाब है।उन्होंने कहा कि हमारे नवी उल माय दीन अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल. ने फरमाया जुमे की बजमाअत नमाज अदा करने का सवाब दीगर नमाजों से ज्यादा है। मुकद्दस रमजान का आखिरी जुमा यानी जुमा अलविदा पर अल्लाह तआला बंदों के गुनाहों को बख्श देता है।लिहाजा जुमा अलविदा पर गुनाहों से तौबा करें और अल्लाह के दरबार में रो रो कर दुआएं मांगे।इस दिन की दुआएं कुबूल होती है।उन्होंने लोगों से कहा कि मुल्क में अमन चैन व सलामती के लिए भी दुआएं करने की अपील की।