प्रणव तिवारी उपसम्पादक
गोरखपुर -द्वितीय विश्वयुद्ध के हीरो पायलट सरदार दिलीप सिंह मजीठिया पे अपने जीवन के पांच दशक गोरखपुर के सरदार नगर में भी गुजार।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान म्यांमार (बर्मा) में भारतीय वायु सेना की कमान संभालने वाले सरदार दिलीप सिंह मजीठिया बीती रात 12:30 को जीवन के 103 वर्ष पूरे कर हमेशा के लिए मां भारती के गोद में सो गये। कम ही लोगों को पता है कि ब्रिटिश भारत में वायुसेना में स्क्वाड्रन लीडर का पद सुशोभित कर चुके सरदार मजीठिया के जीवन के पांच दशक गोरखपुर के सरदार नगर में भी बीते हैं। यहां रहकर उन्होंने न केवल पूर्वांचल की धरती को औद्योगिक रूप से उर्वर बनाया बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में भी बढ़ चढ़कर सहयोग किया।मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय जैसे तकनीकी शैक्षणिक संस्थान की नींव तैयार करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए अपनी 317 एकड़ भूमि दान भी दी।
सरदार दिलीप सिंह वर्ष 1940 जब भारतीय वायुसेना में शामिल हुए तो उन दिनों दूसरा विश्वयुद्ध चल रहा था। ब्रिटिश गवर्नमेंट ने उन्हें बर्मा के मोर्चे पर तैनात किया तो वह न केवल बम वर्षक विमानों के साथ वहां डटे रहे बल्कि साहस और वीरता के प्रदर्शन के चलते उस युद्ध के हीरो भी कहलाए। हालांकि सेना के साथ उनका लंबा समय नहीं रहा। पारिवारिक दायित्वों के चलते उन्हें जल्द ही अवकाश लेना पड़ा। मगर हवाई उड़ान का शौक उनका फिर भी जारी रहा। जब अवसर मिला वह विमान उड़ाने का शौक पूरा करने से नहीं चूके।
सेना से अवकाश लेने के बाद 1947 के करीब में वह गोरखपुर आ गए और यहां सरदार नगर में पहले से स्थापित अपने परिवार की सरैया सुगर मिल का काम देखने लगे। लंबे समय तक वह इस चीनी मिल के चेयरमैन रहे। उनके चेयरमैन रहते वह चीनी मिल एशिया की चर्चित मिलों में से एक थी।। उनके कार्यकाल में सरैया स्टील कंपनी और रोलिंग मिल सहित कई अन्य उद्योग भी चर्चा में रहे। 90 के दशक में अस्वस्थता के चलते वह अपनी विदेशी (आस्ट्रेलियन) पत्नी जाॅन सैंडर्स के साथ दिल्ली में रहने लगे। हालांकि उनके सरदार नगर आने-जाने का सिलसिला बना रहा।आज भी सरदार नगर में करीब पांच एकड़ में उनकी कोठी मौजूद हैं ।
गोरखपुर का लेडी प्रसन्न कौर इंटर कालेज सरदारनगर भी आज दिलीप सिंह मजीठिया के ही प्रबंधन में ही चलता है।
गोरखपुर आने के बाद भी सरदार दिलीप सिंह का हवाई जहाज उड़ाने का शौक बना रहा। अपने शौक का पूरा करने के लिए उन्होंने न केवल एक चाटर्ड प्लेन खरीदा बल्कि चीनी मिल परिसर में ही अपना निजी एयरपोर्ट भी बनाया।
आप सभी को बताते चलें कि नेपाल की धरती पर पहली बार हवाई जहाज उतारने का श्रेय भी पायलट दिलीप सिंह मजीठिया को ही है। उन्होंने 23 अप्रैल 1949 को काठमांडू के परेड ग्राउंड में यह ऐतिहासिक कार्य किया था। आज भी काठमांडू के त्रिभुवन हवाई अड्डे पर लगी उनकी तस्वीर इसका प्रमाण है।