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रहमत और मगफिरत के साथ जहन्नुम से आजादी दिलाता है दूसरा अशरा

 

रिपोर्ट  बी.आर.मुराद IBN NEWS फरीदाबाद, हरियाणा

फरीदाबाद:रमजान का महीना वाकई बेशुमार बरकतों वाला होता है। इस मुकद्दस महीने के तीन अशरे (हिस्से) होते हैं। इनमें रोजदार पर अल्लाह तआला की रहमत बरसती है। गुनाह माफ हो जाते हैं। जहनुन्न से आजादी मिलती है। इसी तरह रमजान का महीन अल्लाह के नेक बंदे खुद को इस महीने में इबादत करते हुए जन्नत के हकदार बना लेते हैं।


तो वहीं मौलाना जमालुद्दीन जमीयत उलेमा हिंद के अध्यक्ष के अनुसार माह -ए-रमजान का पहला अशरा रहमत का होता है, तो दूसरा अशरा मगफिरत का होता है,जबकि रमजान के महीने का अंतिम और तीसरा अशरा जहन्नुम से आजादी का होता है।अंतिम अशरे में अल्लाह अपने बंदों को जहन्नुम से आजादी देता है। अब पहले दस दिन रहमत के अशरे में शामिल हैं। मुसलमानों को रोजा रखने के साथ तिलावत-ए-कलाम पाक और तरावीह की नमाज भी पाबंदी के साथ मुकम्मल करनी चाहिए। इसमें अल्लाह अपने बंदों पर रहमत की बारिश करता है।

यानि दस दिन तक अल्लाह की बेशुमार रहमतें बंदों पर नाजिल होती हैं। दूसरा अशरा मगफिरत का है, इस अशरे में अल्लाह मरहूमों की मगफिरत फरमाता है तथा रोजेदारों को उनके गुनाहों से आजाद करता है। कारी आफताब बताते हैं कि मुकद्दस महीने के बीच के दस दिन में अल्लाह पाक जितने भी मरहूम हैं उनकी मगफिरत फरमाता है तथा रोजेदार बंदों के सारे गुनाह माफ कर दिए जाते हैं। यानि दूसरे अशरे में अल्लाह से गुनाहों की माफी मांगी जाए तो वह कबूल होती है। तीसरा अशरा जहन्नुम से आजादी का होता है। तीसरे अशरे में अल्लाह अपने बंदों को जहन्नुम से निजात देता है। मुकद्दस महीने में मुसलमानों को रोजा रखने के साथ-साथ पांचों वक्त की नमाज व तरावीह पढ़नी चाहिए ताकि अल्लाह की बेशुमार नेमत हासिल कर जन्नत का हकदार बना जा सके।

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