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बौद्धिक आंदोलन के प्रेरक होते हैं ग्रामीण पुस्तकालय

Ibn news Team देवरिया

जब एक पूरी पीढ़ी मोबाइल की ‘मानसिक कैदी’ बन गई हो, लोग तीस सेकेंड का रील देखने और बनाने में व्यस्त हों, युवा पुस्तकों के बजाय चन्द सेकंड में सफलता और करोड़पति बनने का मंत्र तलाश रहें हों! तब ‘ग्रामीण पुस्तकालय’ की स्थापना न केवल गाँव के लोगों को पुस्तक उपलब्ध करवाकर अध्ययन संस्कृति से समझ का विस्तार करेगा बल्कि संसाधन विहीन युवाओं के लिए एक उम्मीद भी साबित होगा।
पुस्तकालयों ने बड़े-बड़े सामाजिक परिवर्तनों की आधारशिला रखी है। यह किताबों को बचाने के साथ-साथ मानसिक आजादी के आंदोलन का केंद्र भी होगा।’ उक्त विचार सलेमपुर के तहसीलदार डॉ. भागीरथी सिंह ने ‘ग्रामीण पुस्तकालय’ के उद्घाटन के अवसर पर व्यक्त किया।

झारखंड में शिक्षक और ग्राम भलुआ, पोस्ट परसिया, जनपद देवरिया के मूल निवासी डॉ. महेश सिंह ने ग्रामीण समाज की पहुँच में पुस्तकों को उपलब्ध कराने की दिशा में एक अनूठी पहल करते हुए ‘ग्रामीण पुस्तकालय’ की स्थापना की।

इस अवसर आयोजित सभा में डॉ. महेश सिंह ने अतिथियों का परिचय और स्वागत करते हुए बताया कि उनके गाँव के आसपास स्कूल-कॉलेज नहीं हैं। युवा विभिन्न अनुत्पादक गतिविधियों-आयोजनों में संलिप्त हैं। नशा करने, ताश-जुआ खेलने आदि जैसी सामाजिक बुराइयों में बुरी तरह फँस गए हैं। देखा-देखी किशोर भी उन्हीं अवगुणों को सीख रहे हैं, जिससे ग्रामीण समाज बरबाद हो रहा है। यह पुस्तकालय लोगों की सार्थक सामाजिक गतिविधियों और पढ़ने-लिखने का केंद्र होगा। इसमें बच्चे, बूढ़े, युवा सभी के लिए अच्छी गुणवत्ता वाली पुस्तकें होंगी एवं डिमांड पर अन्य आवश्यक पुस्तकें उपलब्ध कराने का भी प्रयास रहेगा। समय-समय पर छात्रों के प्रवेश, विषय चयन और उच्च शिक्षा के संबध में विषय विशेषज्ञों के द्वारा काउंसलिंग का कार्य भी किया जाएगा। बतौर डॉ. महेश इस ग्रामीण पुस्तकालय की प्रेरणा मेरी बहन एडवोकेट श्रेया का शिक्षा के लिए किया गया संघर्ष है।

इस अवसर पर मंदारिन (चीनी) भाषा में परास्नातक, सामाजिक कार्यकर्ता शिवांग सिंह ने कहा कि ‘हाईस्कूल और इंटर कॉलेज की पढ़ाई के बाद युवा उहापोह की स्थिति में आ जाता है। ग्रामीण युवा संसाधनों एवं उचित प्रेरणा के अभाव में जैसे-तैसे पढ़ाई पूर करता है, आगे की पढ़ाई अनियोजित तरीके से करने के कारण उसके सामने रोजगार का संकट आ जाता है। उन्होंने सुझाया कि युवाओं को माध्यमिक की पढ़ाई के बाद कोई न कोई व्यवसायिक प्रशिक्षण या विदेशी भाषाओं में कोर्स अवश्य कर लेनी चाहिए, इससे रोजगार के नए अवसर मिल सकते हैं।

शिक्षक आदित्य प्रताप सिंह ने कहा कि ‘पुस्तकालय का माहौल युवाओं को अध्ययन में मदद करता है। गाँव में लोग एक जुमला दोहराते रहते हैं कि पढ़ लिख के कोई राजा हुआ है? यह युवाओं से बोला गया सबसे बड़ा झूठ है। पढ़ लिख कर ही प्रतिष्ठित संवैधानिक पद प्राप्त किया जा सकता। ज्ञान व्यक्ति को समाज नेतृत्व के योग्य बनाता है और नेतृत्वकर्ता ही आज का राजा है। ग्रामीण पुस्तकालय समाज नेतृत्व का प्रशिक्षण देते हैं।

शिक्षिका डॉ. विजयश्री मल्ल ने कहा कि लीक बनाने का काम महत्वपूर्ण होता है। विद्यालय दूर होने के कारण हमारे गाँव में लड़कियाँ इंटर के बाद पढ़ नहीं पाती थीं। इंटर के बाद हम तीन सहेलियों ने गाँव से दूर यात्रा कर पढ़ाई का निर्णय लिया था और आज उस सड़क से गांव की हजारों लड़कियाँ पढ़ने जाने लगी हैं। डॉ. महेश ने पुस्तकालय की स्थापना कर एक ऐसा ही रास्ता खोला है। उम्मीद है कि लोग इसका फायदा जरूर उठाएंगे। खासकर लड़कियाँ इसका उपयोग अवश्य करेंगी।

सहायक प्रोफेसर डॉ. हितेश सिंह सैंथवार ने कहा कि ‘शिक्षित व्यक्ति ही अपनी परम्पराओं की समीक्षा का साहस कर पाता है अन्यथा लोग इसे बिना तर्क एवं समझ के परंपराओं के बोझ को कुली की भाँति पीढ़ी दर पीढ़ी ढोते रहते हैं।
ग्रामीण पुस्तकालय और सामूहिक अध्ययन कक्ष न केवल प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में सहयोग करेगा अपितु सामूहिकता का भाव जगाने, वाद-विवाद-संवाद को प्रेरित कर लोकतांत्रिक समझ विकसित करने और सामाजिक बुराइयों पर चिंतन कर इनके निवारण के लिए भी प्रेरित करेगा। ग्रामीण पुस्तकालय में समय-समय पर अन्य सामाजिक एवं शैक्षणिक आयोजन भी होते रहने चाहिए।

सामाजिक राजनैतिक कार्यकर्ता संजय दीप ने कहा कि स्कूलों-कॉलेजों के निजीकरण के सरकारी अभियान से गरीब, किसान और दलित वर्ग की बुनियादी शिक्षाधिकार को छीना जा रहा है। सरकार एक तरफ धर्मस्थल, धार्मिक आयोजनों पर खूब धन खर्च कर रही, वहीं विश्वविद्यालयों, शिक्षालयों के अनुदान में कटौती कर रही है, जिससे बेतहाशा शुल्क वॄद्धि हो रही है। सरकार धार्मिक यात्राओं पर फूल बरसा रही है, लेकिन उत्तर प्रदेश में PET जैसी परीक्षा के लिए 50 लाख से अधिक प्रतियोगी व अभिभावक जान हथेली पर लेकर यात्रा करने को मजबूर किये गए, इनकी सुधि लेने वाला कोई नहीं दिखा।
इससे सरकार की प्राथमिकता समझी जा सकती है, ऐसे निराशा के माहौल में ग्रामीण पुस्तकालय उम्मीद की किरण है।

अध्यक्षीय उद्बोधन में सामाजिक राजनैतिक कार्यकर्ता कॉमरेड डॉ. चतुरानन ओझा ने ग्रामीण पुस्तकालय की अवधारणा की तारीफ करते हुए कहा कि ऐसे पुस्तकालय छात्रों के सेलेबस से बाहर सामाजिक शिक्षा देने व जिज्ञासा तृप्ति में उपयोगी होते हैं। आज भारतीय समाज अंधविश्वास और कर्मकांडो को धर्म के नाम ढोते हुए अपने धन और समय का अपव्यय कर रहा है। युवा चमत्कार की उम्मीद में अंधविश्वास के जाल में फंसा हुआ है। सरकार द्वारा धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन इस चलन को और बढ़ावा दे रहा है। जबकि किसी समाज की तरक्की तार्किक और वैज्ञानिक समझ से ही संभव हो पाती है। ग्रामीण पुस्तकालय तर्क और विज्ञान पर आधारित संवाद का केंद्र बने ऐसी मेरी आकांक्षा है। जरूरी नहीं कि प्रत्येक पढा-लिखा व्यक्ति प्रतिष्ठत सरकारी नौकरी ही प्राप्त कर ले, शिक्षा व्यक्ति को जागरूक नागरिक बनाती है, जिससे व्यक्ति अधिकारों, कर्तव्यों को जान समझ पाता है।
उन्होंने उपस्थित जनों एवं समाज से इस पुस्तकालय की समृद्धि के लिए यथाशक्ति सहयोग की अपील की।

सभा का संचालन डॉ. रवींद्र प्रताप सिंह ने किया। अपनी टिप्पणी में उन्होंने कहा कि ग्रामीण परिवेश में लोगों का ध्यान तात्कालिक लाभ पर ज्यादा रहता है। लोग प्रात: चार बजे जागकर अपने मवेशियों की देखभाल पूरे मन से इस उम्मीद में करते हैं कि शाम तक दो-चार लीटर दूध मिल जाएगा, परंतु अपनी संतानों पर निवेश के प्रति गंभीर नहीं होते। नतीजन उनके संतान की शिक्षा उपेक्षित एवं अनियोजित हो जाती है। यह पुस्तकालय अपने आयोजनों के माध्यम से अभिभावकों में शिक्षा के प्रति निवेश को प्रेरित करेगा। शिक्षा में निवेश सर्वाधिक सुरक्षित और फलदायी निवेश है।

इस कार्यक्रम में दीपदान महोत्सव आयोजन समिति, कुशीनगर (DMASK) के द्वारा उपलब्ध कराई गई पत्रकार एवं चिंतक सत्येंद्र पीएस द्वारा लिखित (अनुदित) पुस्तक ‘मंडल कमीशन : राष्ट्र निर्माण की बड़ी पहल’, ई. जीसी सिंह की पुस्तक ‘भारतीय लोक परंपराओं में भगवान बुद्ध और उनका धम्म’ (2 प्रति) रवींद्र प्रताप सिंह द्वारा संपादित पुस्तक ‘समंदर में सूरज’ (2 प्रति), सावित्रीबाई फुले पंचांग, जिसके पीछे 10 महान शख्सियतों पर आलेख हैं। (10 प्रति) पुस्तकालय को उपलब्ध कराया गया।
साथ ही साथ सभा में उपस्थित जनों को शिक्षिका पूजा सिंह की पेंटिंग से विकसित बुद्ध तस्वीर युक्त कलेंडर वितरित किया गया।
अंत में सभी अतिथियों और उपस्थित जनों ने पुस्तकालय की समृद्धि के लिए हर संभव सहयोग का आश्वासन दिया। श्यामा मल्ल महाविद्यालय एवं इंटर कॉलेज के प्रबंधक मणिदेव मल्ल ने कहा कि मैं यहां से प्रेरणा लेकर जा रहा हूँ और जल्द ही अपने गाँव मे भी एक पुस्तकालय खोलूंगा।
इस अवसर पर विद्यासागर मल्ल, ग्राम भलुआ के प्रधान वीरकेश्वर सिंह, रामप्रवेश सिंह, श्रीराम सिंह, पंकज शर्मा, मनोज प्रजापति, पवन प्रजापति, एडवोकेट सतीश गिरी, योगेश कुशवाहा, विनय यादव, लल्लन सिंह, कोमल प्रसाद आदि के साथ गाँव के सैकड़ो युवा उपस्थित रहे।

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