महाराजगंज सिसवा बाजार
14 को चाँद न सोया था, नभमण्डल भी मुस्काया था;
जब स्वतंत्रता की प्रथम रश्मि,15 का सूरज लाया था! वह समय बुरा भारत का था, अंग्रेज यहां जब आये थे; व्यापार करेंगे मेरे संग, ऐसा कुछ जाल बिछाए थे! हिन्द हमारा था उदार, जो अडिग रहा विश्वासो में;
बस यही कमी थी फंसा देश, गोरे शकुनि के पासों में!
दमनचक्र फिर शुरू हुआ, वे तब-तक कहर गिराये थे;
“वीर-सपूत” मेरे, जबतक “आजादी” नहीं दिलाये थे!
सन सैतालिस की मध्यरात्रि भारत सम्प्रभुता पाया था;
और स्वतंत्रता की प्रथम रश्मि,15अगस्त ले आया था। #रचनाकार आलोक_शर्मा