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मिर्जापुर – महेश्वर से विष्णु बने दिखे कथक नृत्य सम्राट पं महेश्वरपति त्रिपाठी


रिपोर्ट विकास चन्द्र अग्रहरि ब्यूरो चीफ मिर्जापुर
कजली के दिन सांगीतिक माहौल में मनाया गयस 87वां जन्म दिवस

मिर्जापुर । नृत्य-संगीत के देवताओं की पूरी की पूरी अनुकम्पा विंध्याचल के कथक नृत्य के सम्राट माने जाने वाले पं0 महेश्वरपति त्रिपाठी पर रही है कि वर्षा ऋतु में आकाश-आच्छादित मेघों की चमक-दमक, गर्जना से विंध्य-अंचल में उतरी कजली के दिन अत्यंत सुमधुर सांगीतिक परिवेश में उनका 87वां जन्म दिवस मनाया गया । कलाकार उंगलियों से तबले और हारमोनियम से स्वर निकाल रहे थे तो उनके नन्हें पौध स्वरूप शिष्य अपने पांवों की थाप से जो स्वर प्रस्तुत कर रहे थे, वह वैदिक मंत्रों सदृश लग रहे थे ।
बुधवार को पं महेश्वरपति त्रिपाठी द्वारा वर्ष 1972 में स्थापित साधना ललित कला प्रशिक्षण एवं विंध्य सांस्कृतिक समिति के तत्वावधान में ‘संगीतांजलि संगीत समारोह का आयोजन किया गया । सर्वप्रथम विदुषी कथावाचिका भक्तिकिरण ने मंच को संचालन के ज़रिए सजाया । उनके पुरूष सूक्त के पाठ के बीच मुख्य अतिथि वाराणसी के आयकर आयुक्त श्री सूर्यकांत मिश्र, वाराणसी के गोयनका संस्कृत महाविद्यालय के अवकाश प्राप्त प्राचार्य डॉ आख़िलानन्द शास्त्री, ई0 कुलपाल सिंह, सलिल पांडेय ने सामूहिक रूप से मां भगवती के चित्र के आगे दीप प्रज्ज्वलित किया । इस सामूहिकता के पीछे अध्यात्म एवं विज्ञान की सामूहिकता से ही प्रकाश का मिलने का भाव दृष्टिगत हुआ । मुख्य अतिथि श्री सूर्यकांत मिश्र ने अपने उद्बोधन में संगीत को जीवन के हर कदम से जोड़ा तथा कहा कि भारतीय संगीत तनाव का इलाज कर सुकुन की शांति और नींद देनेवाली औषधि है जिसकी भारत से ज्यादा विदेशियों को जरूरत है । उद्बोधन के क्रम में कार्यक्रम के टाइटिल (शीर्षक) संगीतांजलि संगीत समारोह की व्याख्या करते हुए सलिल पांडेय ने कहा कि संगीताजंलि सामवेद है। सामवेद की अंजलि से ही स्वर-राग-ताक-लय-नृत्य-भाव-कोक-हस्त का प्रवाह हुआ है जो संगीत को जीवंत बनाए है ।
कार्यक्रम के अगले चरण में पं महेश्वरपति त्रिपाठी के मनमोहक से शिष्य मनीष शर्मा का कथक नृत्य उपस्थित लोगों के मन को नचाने सा लगा । तबले एवं हारमोनियम पर लय मिलाने वाले तो यह जता गए कि जिह्वा के मधु-से मीठे शब्दों से ज्यादे उंगलियों एवं होंठों को बांसुरी में प्राण-वायु प्रवाहित कर अमृत से शब्द निकाले जा सकते हैं । प्रारम्भ में त्रिपाठी जी के पुत्र दिनेश्वरपति त्रिपाठी ने संस्था को जीवंत बनाए रखने के लिए सहयोग जरूरी बताया तो संस्कार भारती के पूर्व सचिव विंध्यवासिनी केसरवानी ने नई पीढ़ी को भारतीय संगीत से जोड़ने पर दृढ़ता दिखाई । कार्यक्रम विशिष्ट जनों से भरा था जिसमें पं दीनबन्धु मिश्र, डॉ सरिता त्रिपाठी, अतुल मालवीय, श्याम सुंदर केसरी, हनी मिश्र, रवि शास्त्री आदि वातावरण को भव्य बनाने के लिए इधर उधर दौड़ते हुए एक अलग ढंग का नृत्य ही कर रहे थे ।
पूरे कार्यक्रम में पं महेश्वरपति त्रिपाठी विशेष रंग और ढंग की पगड़ी बाँधे उम्र के वृद्धि के कारण अगली कुर्सी पर बैठे थे । एक बारगी लगा कि वे महेश्वर से स्वर्ण ( महेश्वर का एक अर्थ सोना भी है) सी चमक लेकर विष्णुवत हो गए। बैकुंठ में जब नारायण बैठते थे तो अन्य देवता नाचते गाते थे और वे सिर्फ दर्शक रहते थे ।

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