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कुछ अनसुने पहलू पर प्रकाश डालने का प्रयास मेरे द्वारा।
सम्पूर्ण कथन क्षेत्र में चर्चाओं के आधार पर…..
वैसे तो अभय सिंह का नाम आज से नही बल्कि लगभग तीन दशक पहले से ही न केवल जिले में बल्कि सम्पूर्ण प्रदेश में लोगों के लिए अनसुना नही रहा,पर आज के रजनैतिक उठापटक में कुछ कुछ अवसरवादी,जातिवादी लोग उनके नाम को छोटा दिखाने के प्रयास में लगे रहते हैं जोकि केवल आमजन के बीच भ्रम फैलाकर स्वयं की राजनीतिक रोटी सेंकने का प्रयास मात्र है,ये केवल हमारा विचार नही बल्कि क्षेत्र में हर उस आमजन का विचार है जो किसी निष्पक्ष और निर्भीक होकर क्षेत्र में मेरे भ्रमण में सामने आया,अभय सिंह के परिवार के रजनैतिक रसूख़ पर प्रकाश डालने के प्रयास मात्र से ही उनके परिवार की लोकप्रियता का लोहा उन लोगों को भी मानना पड़ेगा जो अफ़वाहों में फँसकर किसी राजनीतिक शिकार हुए है।
अभय सिंह के बड़े बाबा कमता प्रसाद सिंह पूरा ब्लॉक के ब्लॉक प्रमुख सन 1952 से 1967 तक लगातार निर्विरोध चुने गये,आख़िरी चुनाव वो 1967 में लड़े,और 114 वोटों में अंकेले 57 मत पाकर विजयी हुए।
लोग बताते हैं वो जितने लोकप्रिय थे उससे कहीं अधिक सैद्धांतिक भी रहे,एकबार तो उन्होंने 1967 का चुनाव मात्र इस लिये मना कर दिया था क्योंकि उनके विरोध में 4 अन्य ठाकुर प्रत्याशी व 2 वर्मा प्रत्याशी मैदान में आ गए,उस समय उन्होंने यही कहकर चुनाव न लड़ने का मन बना लिया था कि वो लोगों के बीच अपने को अच्छा बताकर और क्षेत्र के लोगों को बुरा बताकर वोट कैसे माँग सकते हैं,पर क्षेत्र की जनता की माँग पर उनको चुनाव लड़ना पड़ा और उस समय भी साबित कर दिया कि लोकप्रियता जातिवाद पर हावी हुई।
लोग बताते हैं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होते हुए भी उन्होंने पेंशन लेने से यह कहकर इंकार कर दिया कि वो देश के लिए लड़े हैं न कि पेंशन के लिये,और उससे बड़ी बात उनके स्वर्गवासी होने के बाद उनकी पत्नी ने भी आजीवन पेंशन नही ली,समय बीतता गया पूर्व विधायक अभय सिंह के पिताजी बाबू भगवान बक्श सिंह बड़े हुए क्षेत्र के ही स्कूल बच्चू लाल से शिक्षा प्रारम्भ कर जीआईसी फ़ैज़ाबाद पंहुचे और 75 रुपये मासिक छात्रवृत पाकर वहाँ की पढ़ाई पूरी किया,तत्पश्चात इलाहाबाद वि वि में वनस्पति विज्ञान से पोस्टग्रैजूएट में गोल्डमेडलिस्ट रहे,फिर दौर शुरू हुआ रोज़ीरोटी का और 1974 में उन्होंने IAS का इग्ज़ाम पास किया पर इंटरव्यू में मात्र 1 नम्बर से रह गए,उसका भी बड़ा कारण था, उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम का अपने बड़े पिता जी का certificate मात्र इस लिये नही लगाया कि जिस certificate का प्रयोग उनके बड़े पिता जी व माता जी ने पेंशन के लिए नही किया उसका प्रयोग मैं नौकरी पाने में कैसे करूँ।
फ़िर भी प्रयास जारी रहा और उनका चयन बैंक पीओ के लिए हुआ,और सारा जीवन बैंक अधिकारी के रूप में भी यूनियन का नेता बन बैंक कर्मियों के लिए लड़ते रहे,और आज सेवामुक्त होने के बाद भी क्षेत्र के लोगों के बीच उनकी ख़ुशी से लेकर अंतिम यात्रा तक अडिग होकर बग़ल खड़े मिलते हैं।
नई पीढ़ी पूर्व विधायक अभय सिंह की शिक्षा व राजनैतिक पँहुच के बारे में काफ़ी कुछ जानती है,वो जहां रहते हैं उसी के हो लेते हैं,जिनके नाम का लोहा आज भी भाजपा लहर में मात्र 11 हज़ार से पराजित होने बाद क्षेत्र के बड़े बड़े दिग्गज मानते हैं,कई तो विधानसभा छोड़कर भागने की बात भी करने लगे हैं,
सही चयन क्षेत्र की तक़दीर बदल सकता है।
अभय सिंह के तीन साल तक जनता के बीच निःस्वार्थ सेवाभाव से बने रहने के बावजूद आज फिर अवसरवादी जातिवादी लोगों द्वारा मुँह उठाना यह साबित करता है राजनीति अब जनसेवा का माध्यम नही बल्कि सरकारी धन के लूट का साधन बन गया है।
इसीलिए कहा जाता राजनीति में भी ख़ानदानी गुणवत्ता परक लोगों का चयन अब लोगों की ज़रूरत बनना चाहिये।