14 वर्ष तक श्रीराम के खड़ाऊं सिंहासन पर रखकर राज्य चलाया
रघुकुल रीति सदा चली आई प्राण जाहु पर बचन ना जाई
मीरजापुर। अहरौरा नगर के सत्यानगंज में स्थित राधा कृष्ण मंदिर (स्थल) परिसर में आयोजित चल रहे नौ दिवसीय श्रीराम कथा के सातवें दिन मंगल विवाह के बाद राम वनागमन केवट प्रसंग कि कथा को सुन भक्त हुए भावुक, दासी मंथरा के द्वारा माता कैकेई से अपने पूर्व का वचन मांगने की दिलाया याद। कथावाचक शांतनु महाराज ने श्री रामकथा के छठे दिन भगवान श्रीराम जी के वन गमन का वृतांत सुनाया।
उन्होंने मंथरा दासी का उदाहरण देते हुए कहा कि कुसंग का परिणाम हमेशा भयंकर होता है। भजनों की प्रस्तुति पर वातावरण भक्तिमय हो गया।मंथरा दासी के कहने पर माता कैकेयी ने महाराज दशरथ से अपने दो वरदान मांगे। जिन्हें सुनकर महाराज दशरथ व्याकुल हो गए। महाराज दशरथ कैकेयी से अपना वरदान बदलने को कहते हैं, परंतु कैकेयी कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है। राजा दशरथ पूरी रात राम-राम करते रहे और रोते रहे। सुबह अयोध्यावासी महाराज के दर्शन करने महल पहुंचे जाते हैं। जब राम पिता महाराज दशरथ की दशा देखते हैं तो भगवान श्रीराम भी रो पड़ते हैं और माता कैकेयी से कहते हैं कि वह बेटा भाग्यशाली होता है जो अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करता है।
और कहा कि श्रीराम विवाह के समय पूरी अयोध्या आनंद में डूबी हुई। कुछ दिनों बाद राजा दशरथ ने श्रीराम का राज्याभिषेक करने का निर्णय लिया। उधर देवता चितित है कि यदि श्रीराम राजा बन गए तो देवताओं की रक्षा कौन करेगा। राक्षसों का संहार कौन करेगा। देवता माता सरस्वती के पास जाते हैं। माता सरस्वती मंथरा की मति फेर देती हैं। मंथरा के बहकाने पर कैकेयी श्रीराम के लिए 14 वर्ष का वनवास मांग लेती हैं । श्री राम कथा की यही विशेषता है कि भरत राज्य पाकर भी उसे स्वीकार नहीं करते हैं । उन्होंने 14 वर्ष तक श्रीराम के खड़ाऊं सिंहासन पर रखकर राज्य चलाया। राम सीता और लक्ष्मण के वनगमन के समय गंगा पार जाने के लिए श्रीराम केवट को बुलाते हैं।
केवट शर्त लगाता है कि जब तक आपके चरण नहीं धो लूंगा आपको पार नहीं उतारूंगा। भगवान भक्त केवट की बात मान लेते हैं। और कहा कि राम कथा से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें राम की तरह अपने माता-पिता, गुरुजनों की भावनाओं को पूरा-पूरा सम्मान करना चाहिए। इस कथा से हमें साहस और बुद्धि से प्रत्येक कठिनाइयों का सामना करने की प्रेरणा मिलती है। विपरीत परिस्थितियों में धीरज बनाए रखना भी इस कथा के माध्यम से हम सीखते हैं। रामायणम समिति के अध्यक्ष दिग्विजय सिंह, महामंत्री जितेंद्र अग्रहरि, ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह, धीरज सिंह, शिवदर्शन सिंह, डॉ. शरद चन्द्र श्रीवास्तव, रिंकू श्रीवास्तव, अमन कक्कड़, शिखर सिंह, अभय प्रताप सिंह, त्रिलोकी केशरी, संदीप पांडेय, रिंकू मोदनवाल, बादल पाण्डेय, उदय अग्रहरि के साथ सैकड़ो रामभक्त रहे।