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कर्बला के शहीदों की याद में लबों पर जारी ‘या हुसैन’ की सदा


इमाम हसन व इमाम हुसैन जन्नती जवानों के सरदार

मुहर्रम की 7वीं तारीख़ को यजीदियों ने पानी पर रोक लगाई

अकीदतमंदों में बंटा लंगर-ए-हुसैनी व शर्बत

मस्जिदों व घरों में जारी ‘जिक्रे शहीद-ए-कर्बला’ महफिल

रिपोर्ट ब्यूरो

गोरखपुर। मुहर्रम की 7वीं तारीख़ को मस्जिदों व घरों में हज़रत सैयदना इमाम हुसैन व उनके जांनिसारों की याद में महफिलों का दौर जारी रहा। मुहर्रम की 7वीं तारीख़ को ज़ालिम यजीदियों ने इमाम हुसैन व उनके साथियों के लिए पानी पर रोक लगा दी थी। मस्जिदों व घरों पर फ़ातिहा-ऩियाज हुई। तकरीरों में उलेमा-ए-किराम ने शहीद-ए-आज़म इमाम हुसैन व कर्बला के शहीदों की क़ुर्बानियों को याद किया। जिसे सुनकर अकीदतमंदों की आंखें नम हो गईं और लबों से या हुसैन की सदा जारी हुई। बहादुरिया जामा मस्जिद रहमतनगर पर अली बहादुर शाह नौजवान कमेटी के अली गज़नफर शाह अज़हरी, आसिफ कुरैशी ‘बब्लू’, मो. ज़ैद, मो. फैज़, मो. आसिफ, मो. अरशद, मो. तैयब, तौसीफ खान, मो. लवी, अली कुरैशी, मो. रफीज़, सैयद मारूफ ने लंगर-ए-हुसैनी बांटा। अकीदतमंदों को शर्बत व पानी भी पिलाया गया। इमामबाड़ा सूरजकुंड (अम्बेडकर नगर) पर तामीर अहमद अज़ीज़ी ने पौधारोपण किया।

मगंलवार को ‘जिक्रे शहीद-ए-कर्बला’ महफिल के तहत इमामबाड़ा पुराना गोरखपुर में मौलाना जहांगीर अहमद अज़ीज़ी ने कहा कि जो लोग अल्लाह की राह में अपनी जान क़ुर्बान कर देते हैं वह शहीद हो जाते हैं और शहीद कभी नहीं मरता बल्कि वह ज़िन्दा रहता है। हज़रत सैयदना इमाम हुसैन व उनके जांनिसार आज भी ज़िन्दा हैं। यदि आपको इमाम हुसैन से सच्ची मोहब्बत है तो उनके नक्शेक़दम पर चलने का ज़ज्बा पैदा करें। इंसानियत को ज़िन्दा रखें। इमाम हुसैन ने दीन-ए-इस्लाम व इंसानियत की खातिर सब कुछ क़ुर्बान कर दिया लेकिन जुल्म करने वालों के आगे सर नहीं झुकाया।

मकतब इस्लामियात चिंगी शहीद इमामबाड़ा तुर्कमानपुर में कारी मो. अनस रज़वी ने कहा कि कर्बला के मैदान में 10वीं मुहर्रम को सुबह से दोपहर तक खानदाने नुबूवत के तमाम चश्मो चिराग एक-एक कर शहीद हो गए। हर तड़पती लाश की आख़िरी हिचकी पर हज़रत सैयदना इमाम हुसैन मैदान में पहुंचे। शहीदों का जिस्म गोद में उठा लिया। खेमे तक ले आए। जिगर के टुकडे़ भी है। आंख के तारे भी हैं। हज़रत जैनब के दुलारे भी। तीन दिन का भूखा प्यासा शेर बाइस हजार के लश्कर के घेरे में है। तीरों की बारिश हो रही है। इसके बावजूद हज़रत अली के लख्ते जिगर बहादुरी के जौहर दिखाते रहे और एक-एक बार में कई जहन्नमियों के सर क़लम करते रहे। अंत में आपने सजदे के हालात में शहादत पाई।

नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर में मौलाना मो. असलम रज़वी ने कहा कि कर्बला के मैदान में जबरदस्त मुकाबला हक और बातिल के बीच शुरू हुआ। तीर, नेजा और शमशीर के बहत्तर जख़्म खाने के बाद इमाम हुसैन सजदे में गिरे और अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए शहीद हो गए।

शाही जामा मस्जिद तकिया कवलदह में हाफ़िज़ आफताब ने कहा कि करीब 56 साल पांच माह पांच दिन की उम्र शरीफ में जुमा के दिन मुहर्रम की 10वीं तारीख़ 61 हिजरी में इमाम हुसैन इस दुनिया को अलविदा कह गए। अहले बैत (पैगंबर-ए-आज़म के घर वाले) में से कुल 17 हज़रात इमाम हुसैन के हमराह हाजिर होकर रुतबा-ए-शहादत को पहुंचे। कुल 72 अफराद ने शहादत पाईं। यजीदी फौजों ने बचे हुए लोगों पर बहुत जुल्म किया।

गौसिया मस्जिद छोटे काजीपुर में मौलाना मोहम्मद अहमद निज़ामी ने कहा कि कर्बला से हक की राह में क़ुर्बान हो जाने का सबक मिलता है। इमाम हुसैन ने दीन-ए-इस्लाम का झंडा बुलंद कर नमाज़, रोजा, अज़ान व दीन-ए-इस्लाम के तमाम क़वानीन की रक्षा की।

बेलाल मस्जिद इमामबाड़ा अलहदादपुर में कारी शराफत हुसैन क़ादरी ने कहा कि कर्बला के शहीदों की क़ुर्बानियों से ताकतवर से ताकतवर के सामने हक के लिए डटे रहना का ज़ज़्बा पैदा होता है। अंज़ाम की परवाह किए बिना सच पर कायम रहने की हिम्मत पैदा होती है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इसके साथ ही यह पता चलता है कि हार-जीत, जीने-मरने से नहीं, बल्कि इस बात से तय होती है कि आप का रास्ता क्या था आप किन उद्देश्यों के लिए लड़े डटे रहे।

सुन्नी बहादुरिया जामा मस्जिद रहमतनगर में मौलाना अली अहमद ने कहा कि शहीद-ए-आज़म इमाम हुसैन व उनके जांनिसारों को सलाम जिन्होंने हक की आवाज़ बुलंद की और दीन-ए-इस्लाम को बचा लिया।

शाही मस्जिद बसंतपुर सराय में मुफ़्ती मो. शमीम अमज़दी ने कहा कि हज़रत सैयदना इमाम हुसैन ने अज़ीम क़ुर्बानी पेश कर बातिल कुव्वतों को करारी शिकस्त दी।

हुसैनी जामा मस्जिद बड़गो में मौलाना मो. उस्मान बरकाती ने कहा कि हज़रत सैयदना इमाम हसन व हज़रत सैयदना इमाम हुसैन जन्नती जवानों के सरदार हैं। 9वीं और 10वीं मुहर्रम दोनों दिन रोजा रखना अफ़जल है। हदीस शरीफ में इसकी बहुत फज़ीलत आई है। 10वीं मुहर्रम (यौमे आशूरा) बहुत अज़मत वाला दिन है।

मुकीम शाह जामा मस्जिद बुलाकीपुर में मौलाना रियाजुद्दीन क़ादरी व मौलाना फिरोज अहमद निज़ामी ने कहा कि इमाम हुसैन के साथ हज़रत इमाम हसन के चार नौजवान पुत्र हज़रत कासिम, हज़रत अब्दुल्लाह, हज़रत उमर, हज़रत अबू बक़्र और हज़रत अली के पांच पुत्र हज़रत अब्बास, हज़रत उस्मान, हज़रत अब्दुल्लाह, हज़रत मोहम्मद इब्ने अली, हज़रत जाफ़र बिन अली शामिल थे। सभी ने शहादत पाई।

अक्सा मस्जिद शाहिदाबाद हुमायूंपुर उत्तरी में मौलाना तफज़्ज़ुल हुसैन रज़वी व हाफ़िज़ अज़ीम अहमद ने कहा कि पैगंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया हसन और हुसैन दोनों दुनिया में मेरे दो फूल हैं।

ज़ोहरा मस्जिद मौलवी चक बड़गो में कारी अनीस ने कहा कि पैगंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम से पूछा गया कि अहले बैत में आपको सबसे ज्यादा कौन प्यारा है? तो आपने फरमाया हसन और हुसैन। पैगंबर-ए-आज़म हज़रत फातिमा ज़हरा से फरमाते थे कि मेरे पास बच्चों को बुलाओ, फिर उन्हें सूंघते थे और अपने कलेजे से लगाते थे।

महफिलों के अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क की तरक्की व खुशहाली के लिए दुआ मांगी गई। अकीदतमंदों में शीरीनी बांटी गई।

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