रिपोर्ट ब्यूरो
गोरखपुर। फ़िराक़ लिटरेरी फाउंडेशन के तत्वावधान में फ़िराक़ के जन्मदिन पर देर रात तक सजी रही कविता और शायरी की महफ़िल आयोजन शहर के खूनीपुर मे किया गया। मुशायरे की अध्यक्षता गुरुद्वारा कमेटी के अध्यक्ष सरदार जसपाल सिंह ने किया।
इस अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि साहित्य प्रेमी, क़ाज़ी कलीमुल हक़ ने कहा कि फ़िराक़ गोरखपुरी इश्क व मोहब्बत और सुंदरता के शायर थे उन्होंने पश्चिम की सभ्यता से लाभान्वित होने का ढंग सिखाया। उसको हिंदुस्तानी रंग दिया। इसलिए हम कह सकते हैं कि उनकी शायरी में हिंदुस्तान का दिल धड़कता है। यह महान व्यक्तित्व के मालिक थे उन्होंने साहित्य जगत को अपनी कविताओं और लेखों के द्वारा बहुत कुछ दिया उनकी कविताएं उर्दू की अदबी दुनिया के लिए या यह कह सकते हैं कि आज भी इतिहास का एक चमकता हुआ सितारा थी जिनकी उनकी रचनाएं मस्तिक में एक गहरा प्रभाव छोड़ जाती है।
फाउंडेशन के संरक्षक डॉ. फ़ैज़ानुल्लाह ने बताया की गोरखपुर का नाम फ़िराक़ के बग़ैर अधूरा है फ़िराक़ गोरखपुर ने देश की सोंधी सोंधी मिट्टी से देश की तहज़ीबी खुशबू से अपनी शायरी को सजाया है ।
फाउंडेशन के अध्यक्ष अरशद जमाल समानी ने कहा फ़िराक़ गोरखपुरी को एक तरफ जहां फ़न पर महारथ हासिल थी वहीं उर्दू और हिंदी के अल्फ़ाज़ को चुन कर इस तरह शायरी में पिरोया कि वो मुहब्बत की ज़बान हो जाती थी यही वजह है कि उन्होंने सिर्फ गोरखपुर ही नही बल्कि पूरी दुनियां में अपना और गोरखपुर का नाम रौशन किया।
इस मौके पर लोगों ने फ़िराक़ व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला। इस मौके पर आयोजित मुशायरे में कवि शायरों ने अपने-अपने कलाम पेश किये, जो निम्न है:-
मशहूर शायर जलाल समानी ने पढ़ा, गया था ले के मैं फरियाद बदनसीबी की, मगर वो शोख़ ये समझा कोई भिकारी है।
शायर क़ाज़ी कालीमुलहक़ ने पढ़ा..
उसका ही अक्स उसको दिखाना पड़ा मुझे किस्सा उसी का उसको दिखाना पड़ा मुझे, दिल से निकाल कर के बहुत मुतमईन था वो, फिर ख्वाब बन के आंख में आना पड़ा मुझे।
मोइन बशर ने पढ़ा, वो पढ़ रहा था किसी दास्ताँ की तरह मुझे, ये और बात है चेहरा मेरा किताब न था।
प्रेम नाथ मिश्रा ने पढ़ा, शब्द हर यादगार है तेरा, आज भी इंतेज़ार है तेरा।
हरेकृष्ण पांडेय ने पढ़ा, अपनापन मिटने लगा, अपनेपन से बैर
भाई भाई लड़ रहे, नहीं किसी की खैर।
शाकिर अली शाकिर ने पढ़ा, हमारे बीच तू अब तो नहीं है फिर भी जाने क्यों, तेरे होने का एक धुंधला सा कुछ एहसास बाक़ी है।
तौफ़ीक़ साहिर ने पढ़ा, मेरे पास में है होंडा और हुंडई खड़ी है, मेरे हाथ मे है विस्की और साथ मे परी है।
वसीम मज़हर ने मुशायरे संचालन करते हुए पढ़ा, हवाओं में शरार है फ़ज़ाएँ हैं, धुंवा धुंवा, ये कैसी आग दोस्तों वतन के आस पास है।
अब्दुल्लाह जामी ने पढ़ा,
उनके दम से है, सुर्खरू उर्दू
सबकी आंखों में आसमाँ थे फ़िराक़।
सौम्या यादव ने पढ़ा, देखा है कामयाबी को कागजों की कश्ती पर मिलते हुए। माफ कीजिए ए हुजूर दौलत की बदौलत दुनिया नहीं जीती जाती। कवि शायरों ने अपने कलाम पढ लोगों की खूब वाहवाही बटोरी।
इस अवसर पर फैसल जमाल, अफजल जमाल, जमील खां, डॉ इमरान, अशफाक मेकरानी, अर्शद राही आदि उपस्थित रहे। संचालन वसीम मजहर का एवं समाजसेवी
डॉ.अमरनाथ जायसवाल ने आये हुए लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया।