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टीबी मरीज के निकट संपर्की करें सहयोग, टीपीटी प्रोटोकॉल को अपनाएं

 

रिपोर्ट ब्यूरो

 

गोरखपुर। टीबी से बचाव के लिए आवश्यक है कि पुष्ट टीबी मरीज के निकट संपर्की टीबी प्रिवेंशन थेरेपी (टीपीटी) के प्रोटोकॉल को अपनाएं। चिकित्सक ऐसे मरीजों के परिजनों को प्रेरित करें कि वह बचाव के लिए टीपीटी अपनाएं। उक्त बातें प्रभारी जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ गणेश प्रसाद यादव ने जीत टू संस्था के सहयोग से आयोजित हुए सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) कार्यक्रम के दौरान संबोधन में कहीं। आयोजन शहर के एक निजी होटल में गुरूवार की देर शाम तक चला। वक्ताओं ने कहा कि समुदाय में यह संदेश देना होगा कि टीबी के निकट संपर्की में अगर टीबी की पुष्टि नहीं होती है तब भी उसे छह माह तक टीबी से बचाव की दवा खानी होगी।
डॉ यादव ने बताया कि जिले में जीत टू के सहयोग से टीबी मरीजों के कुल 16997 लोगों की स्क्रिनिंग कराई गई जिनमें से 10125 लोगों की टीपीटी शुरू करा दी गयी। इनमें से 8886 लोगों का एक्स रे भी कराया गया। टीपीटी के दौरान 294 लोगों में टीबी के लक्षण दिखे और जांच के बाद 52 लोगों में टीबी की पुष्टि भी हुई। उन्होंने बताया कि सबसे बड़ी बाधा यह है कि टीबी मरीज के कई निकट संपर्की टीपीटी लेने से मना कर देते हैं। जिले में 265 लोगों ने टीपीटी लेने से मना कर दिया। ऐसे लोगों को भी प्रेरित करना होगा ताकि टीबी का खतरा टल जाए।
उप जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ विराट स्वरूप श्रीवास्तव ने जिले में राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम के बारे में प्रकाश डाला और बताया कि टीबी नोटिफिकेशन के बाद सरकारी क्षेत्र में इलाज करवाने से कई प्रकार की सुविधाएं मिलती हैं। ऐसे टीबी मरीजों की एचआईवी व मधुमेह जांच कराई जाती है। धुम्रपान व मदिरापान का इतिहास देखा जाता है। ड्रग सेंस्टिविटि टेस्ट कराया जाता है। इलाज के दौरान ट्रिटमेंट सपोर्ट किया जाता है। कार्यक्रम से जुड़े एसटीएस आवश्कतानुसार होम विजिट करते हैं । कांटैक्ट ट्रेसिंग कर टीपीटी दी जाती है और निक्षय पोषण योजना के तहत इलाज चलने तक 500 रुपये प्रति माह खाते में दिये जाते हैं।
जिले के प्रसिद्ध चेस्ट फिजिशियन डॉ वीएन अग्रवाल ने टीबी मरीज के एक्सरे से जुड़ी तकनीकी पर प्रकाश डाला और वरिष्ठ परामर्शदाता डॉ ए त्रिगुण ने भी डायग्नोसिस की तकनीकियां बताईं। जीत टू संस्था के ड्रिस्ट्रक्ट लीड विकास द्विवेद्वी ने संस्था के योगदान पर प्रकाश डाला और बताया कि टीपीटी के बाद निकट संपर्की में टीबी के विकास की आशंका 60 फीसदी तक कम हो जाती है। एचआईवी मरीजों में टीबी की आशंका सोलह से 21 गुना ज्यादा होती है इसलिए अगर निकट संपर्की इस बीमारी के मरीज हैं तो टीपीटी अति आवश्यक है । टीबी से बचाव राष्ट्रीय नीति का एक अहम हिस्सा है। सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफार) के प्रतिनिधि वेद प्रकाश पाठक ने टीबी उन्मूलन में मीडिया संचार की भूमिका पर प्रकाश डाला।
इस अवसर पर चिकित्सा अधिकारी डॉ प्रफुल्ल राय, जिला कार्यक्रम समन्वयक धर्मवीर प्रताप सिंह, पीपीएम कोआर्डिनेटर अभय नारायण मिश्रा, मिर्जा आफताब बेग, इंद्रनील, राजकुमार और अभयनंद समेत दर्जनों अधिकारी, कर्मचारी व संस्था के प्रतिनिधि मौजूद रहे।

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