क्षेत्रीय मुद्दों की पूर्णता से नेताओं को शीर्ष नेतृत्व की बयानबाजी दोहराने की मजबूरी
पूरे हुए मुद्दों को सवाल बनाकर उछालने से नहीं होगा किसी नेता का भला
रिपोर्ट ब्यूरो गोरखपुर
गोरखपुर। विधानसभा चुनाव में विकास से संबंधित स्थानीय मुद्दे कभी टिकट के दावेदारों और घोषित प्रत्याशियों के लिए सत्ताधारी दल पर हमलावर होने के लिए बड़े हथियार होते थे लेकिन इस चुनाव में अभी तक इसका प्रयोग होता नहीं दिख रहा। विपक्षी दलों से टिकट के दावेदारों या घोषित प्रत्याशियों की तरफ से उसी बयानबाजी को दोहराने की प्रवृत्ति देखी जा रही है जिसे उनका शीर्ष नेतृत्व जारी कर रहा है। विपक्षी नेताओं के पास स्थानीय मुद्दों की किल्लत को भाजपाई सरकार की तरफ से कराए गए विकास कार्यों से जोड़कर देख रहे हैं।
पिछले चुनाव तक पार्टी लाइन से इतर शहर से लेकर गांव तक सड़क, बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता कराने के भी दावे होते थे। हर विधानसभा क्षेत्र में कोई न कोई बड़ा स्थानीय मुद्दा होता था। उदाहरण के रूप में समूचे पूर्वी यूपी व गोरखपुर के लिए खाद कारखाना और एम्स की स्थापना का दावा होता था। पिपराइच विधानसभा क्षेत्र में बंद चीनी मिल को चलाने का वादा होता था। गोरखपुर ग्रामीण में तरकुलानी रेग्युलेटर की बात होती थी। चौरीचौरा में ओवरब्रिज बनवाने का आश्वासन दिया जाता था। अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में स्कूल, कॉलेज, आईटीआई, स्वास्थ्य केंद्र की सौगात देने का नारा बुलंद होता था। पर, आसन्न विधानसभा चुनाव में अब तक ऐसे वादे या नारे कम गूंज रहे या इन पर चर्चा नहीं ही हो रही।
विधानसभार क्षेत्रवार अब तक प्रभावी रहने वाले मुद्दों की पूर्णता के चलते तो कहीं ऐसा नहीं है? इस बारे में सामाजिक कार्यकर्ता राजेश मणि का कहना है कि पूर्वी यूपी के इस अंचल में खाद कारखाना, एम्स जैसी बड़ी मांगें पूर्ण हो गई हैं। इसके अलावा अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में जिन मुद्दों को नेता अपने नारों और वादों का हिस्सा बनाते थे, वे तकरीबन पूरे हो गये हैं। ऐसे में पुराने स्थानीय मुद्दों को सरकार के लिए सवाल बनाने से किसी नेता का भला नहीं होने वाला।