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‘‘सभी का सभी से प्रेम-एकात्म मानवदर्शन‘‘: प्रो. उपेन्द्र नाथ त्रिपाठी क़

रिपोर्ट योगेश श्रीवास्तव

गोरखपुर। दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ, पं. दीनदयाल उपाध्याय जी की जयन्ती 25 सितम्बर को ‘‘एकात्मता सप्ताह‘‘ के रूप में मनाता है, जिस कड़ी में सप्ताह के प्रथम दिन दिनांक 19 सितम्बर, 2021 को ‘‘पं. दीनदयाल उपाध्याय जी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व‘‘ विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुए दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ के निदेशक प्रो. संजीत कुमार गुप्ता ने कार्यक्रम में उपस्थित विद्यार्थियों को शोधपीठ के उद्देश्यों से परिचित कराते हुए कहा की दीनदयाल जी के कृतित्व और विचारों में एकात्मता थी। वे राजनीति में भारतीय तत्व के विवेचक और प्रवक्ता थे। राष्ट्र को दिशा देने में दीनदयाल उपाध्याय जी का बड़ा योगदान था।
सभी का सभी से प्रेम-एकात्म मानवदर्शन है यह दर्शन ऐसे तन्त्र की बात करता है जिसमें मनुष्य के शरीर, मन, बुद्धि एवं आत्मा के आवश्यकता की पूर्ति एवं उसके सर्वांगीण विकास का अवसर मिल सके। उक्त बातंे दीनदयाल शोधपीठ में आयोजित संगोष्ठी में प्रो. उपेन्द्र नाथ त्रिपाठी द्वारा कही गयी। डाॅ. मीतू सिंह ने कहा कि संघर्षों से जीवन निखरता है। दीनदयाल जी के जीवन से हम सभी को यह प्रेरणा लेना चाहिए। डाॅ. रंजनलता ने कहा कि दीनदयाल जी एक राजनीतिज्ञ नहीं वरन महान अर्थशास्त्री एवं समाज सुधारक थें। उन्होंने वर्तमान आर्थिक समाज में समाज को कैसे एक सूत्र में पिरोया जाए के लिए मन्त्र बताए है। डाॅ. पंकज सिंह ने कहा कि मनुष्य केवल अर्थलोलुप प्राणी नहीं है वरन एक सामाजिक प्राणी है। इसलिए समाज के मूल्यों की स्थापना दीनदयाल जी के विचारों का एक महत्वपूर्ण अंग है। सारिका गुप्ता ने कहा कि ग्लोबल के साथ लोकल का भी महत्व है और लोकल से ही सही विकास होगा। इस अवसर पर नंदिता चैरसिया ने अंत्योदय की संकल्पना, रोशनी वर्मा ने हमारी संस्कृति से ही हमारा विकास सम्भव है। नवनीत सिंह ने कहा कि दीनदयाल जी राजनीतिक लोकतंत्र के साथ आर्थिक लोकतंन्त्र की बात करते हंै। नूरी, अंकित शार्मा, प्रवीण तिवारी ने कहा कि भारत से भेद-भाव, विषमता मिटाना ही दीनदयाल जी का लक्ष्य था। परमवीर मिश्रा, सतीश कुमार यादव, रविकान्त तिवारी ने कहा कि दीनदयाल जी एक मौलिक चिन्तक थे, उन्होंने स्वदेश प्रेम, स्वदेशी, स्वावलम्बन एवं विकेन्द्रीकरण को महत्वपूर्ण बताया। हर्षित, मो. कैफियाज, आकाश सिंह ने कहा कि शिक्षण संस्था ही नहीं वरन् जीवन एवं प्रकृति का प्रत्येक घटक हमें सिखाता है। कठिनाईयों एवं संघर्षाें में मैदान नहीं छोड़ना चाहिए। राजीव मौर्या, सत्यपाल, मुस्तबा एवं मनीषा सहानी ने कहा कि समस्त संस्थानों, नियमों एवं कानूनों का मूल उद्देश्य मानवता होना चाहिए। सभी के प्रति आभार ज्ञापन डाॅ रंजनलता द्वारा किया गया।

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