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पुरानी रवायतों के साथ निकला चौथी मोहर्रम का मातमी जुलूस

 

 

रिपोर्ट मो० अनस

 

या हुसैन या हुसैन की सदाओं के बीच हुआ जंजीर और क़मा का मातम

 

गोरखपुर। बुधवार को दिन में 2:00 बजे अलम-ए-मुबारक के साथ मातमी जुलूस मरहूम मोहम्मद मेहदी एडवोकेट के बसंतपुर मुतनाज़ा स्थित आवास से निकलकर हाल्सीगंज,घंटाघर,रेती चौक,इमामबारगह मिर्जा खादिम हुसैन होता हुआ वक्फ इमामबाड़ा अशरफुननिशा खानम,निकट गीताप्रेस,शेखपुर पर समाप्त हुआ।


जुलूस निकालने से पहले एक मजलिस हुई जिसको मौलाना डॉ० सैयद फैय्याज मोहसिन आब्दी साहब ने सम्बोधित किया। मजलिस में मौलाना ने कहा कि लगभग 1400 साल पहले मुल्क शाम ( सीरिया ) में ज़ालिम यजीद ने खुद को मुसलमानों का खलीफा घोषित किया और ताकत व पैसों के ज़ोर पर केवल इस्लाम धर्म के मूल नियमों को ही नहीं बदला बल्की मानवता के विरुद्ध बच्चों औरतों और गरीबों पर अत्याचार शुरू कर दिया। यजीद ने तमाम लोगों को पैसों और सत्ता लालच देकर और डरा धमका कर अपने साथ कर लिया। कोई विरोध करने का साहस नहीं कर पा रहा था। यज़ीद चाहता था कि नबी (स.अ) के नवासे इमाम हुसैन (अ) भी उसकी इन बातों का समर्थन करें क्योंकि अगर इमाम हुसैन (अ) ने उसका समर्थन कर दिया तो फिर उसके इंसानियत के विरुद्ध गलत कार्यों को मान्यता मिल जाएगी। बात यहां तक पहुंची कि यज़ीद ने मुसलमानों के नबी हजरत मोहम्मद मुस्तफा (स० अ०) के नवासे इमाम हुसैन (अ) पर बैयत (पूर्ण सहमति) देने का दबाव डालने लगा। इमाम हुसैन (अ) के इनकार के बाद मदीने में ही उनके क़त्ल की साजिश होने लगी। मौलाना ने कहा कि हजरत इमाम हुसैन (अ) मदीने में जंग को टालने के लिए अपने घर की औरतों छोटे छोटे बच्चों जवानों के साथ मक्का (काबा) पहुंच गए। काबा वो जगह है जहां किसी दुश्मन को भी मारने का या जंग करना सख्त मना है,काबा हज का मुकाम है और अमन की जगह है। यज़ीद ने काबे में भी इमाम हुसैन (अ) के कत्ल की साजिश किया तो इमाम हुसैन (अ) ने मजबूरन हज करने के बजाए उमरा किया और वहां से इमाम हुसैन (अ) अपने काफिले के साथ इराक़ के कर्बला पहुंचे। इमाम हुसैन (अ) ने यहां कर्बला के ज़मीदारों से ज़मीन ख़रीदी और यहां अपना व अपने साथियों के ख़ैमे नस्ब कर दिये। दो मुहर्रम को इमाम हुसैन (अ) कर्बला पहुंचे थे और यज़ीदी फौज ने चार मुहर्रम से ही इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों पर पानी बंद कर दिया था और खैमों में बचा पानी सात मुहर्रम तक ख़त्म हो गया था। बच्चों की प्यास और तमाम तकलीफों के बाद भी इमाम हुसैन (अ) ने यज़ीद की बैयत नहीं किया।


इस तरह 10 मोहर्रम को इमाम हुसैन (अ) और उनके 71 साथियों को बेरहमी से कत्ल कर दिया गया। अपनी शहादत से पहले हजरत इमाम हुसैन (अ) ने एक आवाज बलन्द की थी की “है कोई जो मेरी मदद करे” यह मदद की आवाज़ इंसानियत को बचाने के लिए बुलंद की गई थी जो आज भी पूरी दुनिया में गूंज रही है खासकर भारत में हिंदू मुसलमान मिलकर हज़रत इमाम हुसैन (अ) की याद मनाते हैं। जुलूस देखने के लिए सड़कों पर भीड़ के अलावा छत पर से भी लोग अलम-ए-मुबारक की जयारत कर रहे थे। मातमी दस्ते के लोग जंजीर और कमा से सर और जिस्म पर मातम कर रहे थे, उनके जिस्म लहूलुहान थे। या हुसैन … या हुसैन की सदाओं से माहौल गमगीन हो गया था। जुलूस में आए सभी जायरीनों का मरहूम मोहम्मद मेहंदी (एडवोकेट) के खानवादे ने तहे दिल से खैर मक़दम किया।

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