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यज्ञोपवीत संस्कार और उसका महत्व

 

पं.अनुराग मिश्र “अनु” अध्यात्मिक लेखक

सनातन धर्म में किये जाने वाले कुल संस्कारों की संख्या 16 हैI जिन्हें क्रमशः
गर्भाधान,पुंसवन,सीमन्तोन्नयन,जातकर्म,नामकरण,निष्क्रमण,अन्नप्राशन,चूड़ाकर्म,विद्यारंभ,कर्णवेध,
यज्ञोपवीत, वेदारंभ,केशांत,समावर्तन,विवाह एवं अन्त्येष्टि कहा जाता है I

हिंदू धर्म के अनुसार इन 16 संस्कारों का हमारे जीवन में  बहुत ही महत्व माना गया
है,इन्हीं 16 संस्कारों में से एक प्रमुख संस्कार है 'यज्ञोपवीत संस्कार' । यज्ञोपवीत का अर्थ है
यज्ञोपवीत = यज्ञ +उपवीत, अर्थात् जिसे यज्ञ करने का पूर्ण रूप से अधिकार हो |

संस्कृत भाषा में जनेऊ को 'यज्ञोपवीत' कहा जाता है। यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण किये बिना किसी को भी वेद पाठ या गायत्री जप का अधिकार प्राप्त नहीं होता | जनेऊ सूत से बना एक पवित्र धागा होता है, जो 'यज्ञोपवीत  स्कार' के समय पुरोहित के द्वारा पूजन व मन्त्रों के द्वारा अभिमंत्रित करके धारण
कराया जाता है।

ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य समाज में ' यज्ञोपवीत संस्कार' की परंपरा है। बालक
की आयु 10-12 वर्ष का होने पर उसका यज्ञोपवीत किया जाता है। प्राचीन काल में जनेऊ पहनने के
पश्चात ही बालक को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिलता था। यह प्राचीन परंपरा न केवल धर्म
के अनुसार वरन वैज्ञानिक कारणों से भी बहुत महत्व रखती है।
यज्ञोपवीत (जनेऊ) को ब्रह्मसूत्र, यज्ञसूत्र, व्रतबन्ध और बलबन्ध भी कहते हैं। वेदों में भी जनेऊ
धारण करने की आज्ञा दी गई है। इसे उपनयन संस्कार भी कहते हैं। 'उपनयन' का अर्थ है, पास या
निकट ले जाना। जनेऊ धारण करने वाला व्यक्ति ब्रह्म (परमात्मा) के प्रति समर्पित हो जाता है |
जनेऊ धारण करने के बाद व्यक्ति को विशेष नियम आचरणों का पालन करना पड़ता है |
यज्ञोपवीत (जनेऊ) तीन धागों वाला सूत से बना पवित्र धागा होता है | जिसे यज्ञोपवीत धारी
व्यक्ति बाएँ कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है, यानी इसे गले में इस तरह डाला
जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर रहे।

कौन कर सकता है जनेऊ धारण?
सनातन हिन्दू धर्म के अनुसार प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है कि वो जनेऊ धारण करे और उसके
नियमों का पालन करे ।

यज्ञोपवीत (जनेऊ) के प्रकार :-
तीन धागे वाले, छह धागे वाले जनेऊ |
किस व्यक्ति को कितने धागे वाले यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करना चाहिए ?
ब्रह्मचारी के लिए तीन धागे वाले यज्ञोपवीत (जनेऊ) का विधान है, विवाहित पुरुष को छह धागे
वाले यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करना चाहिए | यज्ञोपवीत (जनेऊ) के छह धागों में से तीन धागे

स्वयं के और तीन धागे उसकी अर्धांगिनी अर्थात पत्नी के बताये गए हैं। आजीवन ब्रह्मचर्य का
पालन करने वाली कन्या को भी जनेऊ धारण का अधिकार है।
यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करने वाले के लिए नियम :-

1. यज्ञोपवीत (जनेऊ) को मल-मूत्र त्यागने से पहले दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथ
स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि यज्ञोपवीत (जनेऊ) कमर से ऊंचा रहे और
अपवित्र न हो।

2. यज्ञोपवीत (जनेऊ) का कोई धागा टूट जाए या मैला हो जाए, तो उसे तुरंत बदल देना चाहिए।

3. परिवार में किसी के जन्म-मरण के सूतक के बाद भी इसे बदल देना चाहिए।

4. यज्ञोपवीत (जनेऊ) शरीर से बाहर नहीं निकाला जाता इसे साफ करने के लिए उसे गले में पहने
रहकर ही घुमाकर धो लेना चाहिए। एक बार यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करने के बाद मनुष्य इसे
उतार नहीं सकता। मैला होने पर उतारने के बाद तुरंत ही दूसरा यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करना
चाहिए।

यज्ञोपवीत (जनेऊ) में तीन सूत्र क्यों ?
यज्ञोपवीत में मुख्‍यरूप से सूत्र तीन होते हैं हर सूत्र में तीन धागे होते हैं। पहला धागा इसमें
उपस्थित तीन सूत्र त्रिमूर्ति ब्रह्मा,विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं जो यज्ञोपवीत धारण करने वाले
पर हमेशा कृपा करते है । दूसरा धागा देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण को  दर्शाता हैं और तीसरा
सत्व, रज और तम इन तीनो गुणों की सगुणात्मक रूप से बढ़ोतरी हो । जनेऊ केवल धार्मिक
नजरिए से ही नहीं, बल्कि सेहत के लिए भी अत्यन्त लाभकारी है I जनेऊ पहनने के लाभों की यहां
संक्षेप में चर्चा की गई है I

यज्ञोपवीत (जनेऊ) पहनने के लाभ –
कब्ज से बचाव : जनेऊ को कान के ऊपर कसकर लपेटने का नियम है। ऐसा करने से कान के पास
से गुजरने वाली उन नसों पर भी दबाव पड़ता है, जिनका संबंध सीधे आंतों से है। इन नसों पर दबाव
पड़ने से कब्ज की श‍िकायत नहीं होती है। पेट साफ होने पर शरीर और मन, दोनों ही सेहतमंद रहते
हैं।

गुर्दे की सुरक्षा : यह नियम है कि बैठकर ही जलपान करना चाहिए अर्थात खड़े रहकर पानी नहीं पीना चाहिए।
इसी नियम के तहत बैठकर ही मूत्र त्याग करना चाहिए। उक्त दोनों नियमों का पालन करने से किडनी पर
प्रेशर नहीं पड़ता। जनेऊ धारण करने से यह दोनों ही नियम अनिवार्य हो जाते हैं।
लकवे से बचाव : जनेऊ धारण करने वाला आदमी को लकवे मारने की संभावना कम हो जाती है
क्योंकि आदमी को बताया गया है कि जनेऊ धारण करने वाले को लघुशंका करते समय दांत पर

दांत बैठा कर रहना चाहिए। मल मूत्र त्याग करते समय दांत पर दांत बैठाकर रहने से आदमी को
लकवा नहीं मारता।
स्मरण शक्ति की रक्षा : कान पर हर रोज जनेऊ रखने और कसने से स्मरण शक्त‍ि का क्षय नहीं
होता है। इससे स्मृति कोष बढ़ता रहता है। कान पर दबाव पड़ने से दिमाग की वे नसें प्रभावी हो
जाती हैं, जिनका संबंध स्मरण शक्त‍ि से होता है। दरअसल गलतियां करने पर बच्चों के कान पकड़ने
या ऐंठने के पीछे भी मूल कारण यही होता था।

जीवाणुओं-कीटाणुओं से बचाव : जो लोग जनेऊ पहनते हैं और इससे जुड़े नियमों का पालन करते हैं,
वे मल-मूत्र त्याग करते वक्त अपना मुंह बंद रखते हैं। इसकी आदत पड़ जाने के बाद लोग बड़ी
आसानी से गंदे स्थानों पर पाए जाने वाले जीवाणुओं और कीटाणुओं के प्रकोप से बच जाते हैं।
शुक्राणुओं की रक्षा : दाएं कान के पास से वे नसें भी गुजरती हैं, जिसका संबंध अंडकोष और
गुप्तेंद्रियों से होता है। मूत्र त्याग के वक्त दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से वे नसें दब जाती हैं, जिनसे
वीर्य निकलता है। ऐसे में जाने-अनजाने शुक्राणुओं की रक्षा होती है। इससे इंसान के बल और तेज में
वृद्ध‍ि होती है।

आचरण की शुद्धता से बढ़ता मानसिक बल : कंधे पर जनेऊ है, इसका मात्र अहसास होने से ही
मनुष्य बुरे कार्यों से दूर रहने लगता है। पवित्रता का अहसास होने से आचरण शुद्ध होने लगते हैं।
आचरण की शुद्धत से मानसिक बल बढ़ता है।

हृदय रोग व ब्लडप्रेशर से बचाव : शोधानुसार मेडिकल साइंस ने भी यह पाया है कि जनेऊ पहनने
वालों को हृदय रोग और ब्लडप्रेशर की आशंका अन्य लोगों के मुकाबले कम होती है। जनेऊ शरीर में
खून के प्रवाह को भी कंट्रोल करने में मददगार होता है। चिकित्सकों अनुसार यह जनेऊ के हृदय के
पास से गुजरने से यह हृदय रोग की संभावना को कम करता है, क्योंकि इससे रक्त संचार सुचारू
रूप से संचालित होने लगता है।

बुरी आत्माओं से रक्षा :- ऐसी मान्यता है कि जनेऊ पहनने वालों के पास बुरी आत्माएं नहीं फटकती
हैं। इसका कारण यह है कि जनेऊ धारण करने वाला खुद पवित्र आत्मरूप बन जाता है और उसमें
स्वत: ही आध्यात्म‍िक ऊर्जा का विकास होता है।

जनेऊ संस्कार के 10 महत्व:
यह अति आवश्यक है कि हर हिन्दू परिवार धार्मिक संस्कारों को महत्व दे I घर में बड़े बुजर्गों का
आदर व आज्ञा का पालन हो, अभिभावक  बच्चों  के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह समय पर करते
रहे। धर्मानुसार आचरण करने से सदाचार, सद्‌बुद्धि, नीति-मर्यादा, सही – गलत का ज्ञान प्राप्त होता
है और घर में सुख शांति रहती है।

1. जनेऊ यानि दूसरा जन्म (पहले माता के गर्भ से दूसरा धर्म में प्रवेश से) माना गया है।

2. उपनयन यानी ज्ञान के नेत्रों का प्राप्त होना, यज्ञोपवीत याने यज्ञ – हवन करने का अधिकार प्राप्त
होना।

3. जनेऊ धारण करने से पूर्व जन्मों  के बुरे कर्म नष्ट हो जाते हैं।

4. जनेऊ धारण करने से आयु, बल, और बुद्धि में वृद्धि होती है।

5. जनेऊ धारण करने से शुद्ध चरित्र और जप, तप, व्रत की प्रेरणा मिलती है।

6. जनेऊ से नैतिकता एवं मानवता के पुण्य कर्तव्यों को पूर्ण करने का आत्म बल मिलता है।

7. जनेऊ के तीन धागे माता-पिता की सेवा और गुरु भक्ति का कर्तव्य बोध कराते हैं।

8. यज्ञोपवीत संस्कार बिना विद्या प्राप्ति, पाठ, पूजा अथवा व्यापार करना सभी निर्थरक है।

9. जनेऊ के तीन धागों  में 9 लड़ होती है, फलस्वरूप जनेऊ पहनने से 9 ग्रह प्रसन्न रहते हैं।

10. शास्त्रों के अनुसार ब्राह्मण बालक 09 वर्ष, क्षत्रिय 11 वर्ष और वैश्य के बालक का 13 वर्ष के पूर्व
संस्कार होना चाहिये और किसी भी परिस्थिति में विवाह योग्य आयु के पूर्व अवश्य हो जाना चाहिये।

जनेऊ धारण करने का मन्त्र है–
यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्रं प्रतिमुंच शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ।।
(पारस्कर गृह्यसूत्र, ऋग्वेद, २/२/११) छन्दोगानाम्: ॐ यज्ञो पवीतमसि यज्ञस्य त्वोपवीतेनोपनह्यामि।।

यज्ञोपवीत उतारने का मंत्र-
एतावद्दिन पर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया। जीर्णत्वात्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुखम्।।

 

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