राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवको ने मनाया हिन्दू साम्राज्य दिनोत्सव
13 वर्ष की आयु मे रोहिलेश्वर मंदिर मे लिया था हिन्दवी साम्राज्य की स्थापना करने का संकल्प
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मीरजापुर। ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ था और इसी दिन हिंदू साम्राज्य स्थापित हुआ। भगवा के अनन्य उपासक शिवाजी रणनीति, कूटनीति में माहिर होने के साथ भ्रष्टाचार निषेधक और हिंदुओं की घर वापसी के प्रबल समर्थक थे। ऐसे शिवाजी का जीवन अतुलनीय है, आप सभी ने पारदर्शी राजा का नाटक जाणता राजा भी देखा है।
इनके जीवन के कृतित्व एवं व्यक्तित्व को किताबो मे पढकर समाज को जानकारी रखनी चाहिए। यह बाते गुरूवार को नगर के सिटी क्लब हाल मे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मीरजापुर नगर की ओर से आयोजित हिन्दू साम्राज्य दिनोत्सव के अवसर पर विभाग संघचालक एवं वरिष्ठ अधिवक्ता तिलकधारी जी ने अपने उद्बोधन के दौरान व्यक्त किया।
उन्होंने कहाकि 19 फरवरी 1630 को जन्मे शिवाजी से बड़ा कोई नायक, संत, भक्त और राजा नही हुआ। हमारे महान ग्रंथों में मनुष्यों के जन्मजात शासक के जो गुण हैं, शिवाजी उन्हीं के अवतार थे। वह भारत के असली पुत्र की तरह थे जो देश की वास्तविक चेतना का प्रतिनिधित्व करते थे। कहाकि शिवाजी महाराज ने 13 वर्ष की आयु मे रोहिलेश्वर मंदिर मे संकल्प लिया था कि हिन्दवी साम्राज्य की स्थापना करूंगा। न कभी विदुर को देखा-पढ़ा था, न चाणक्य को। न उनके दौर में कोई ऐसा शूरवीर था, जो उन्हें प्रेरित कर सकता होता। लेकिन शिवाजी महाराज ने विदुर, कृष्ण, चाणक्य, शुक्राचार्य, हनुमान और राम-सभी को आत्मसात किया हुआ था।
उनकी पहली नायक उनकी माता जीजाबाई हैं। जिन्होंने बचपन से ही उनको रामायण और महाभारत की शिक्षा दी। जब शिवाजी जी जीजाबाई के पेट मे थे तो सखियो से एक दिन कहा कि मै चाहती है मेरे दो नही 18-18 हाथ हो और मै चवर और तलवार लेकर विचरण करू और अधर्मियो का सर्वनाश करू।
महात्मा विदुर ने कहा था-
कृते प्रतिकृतिं कुर्याद्विंसिते प्रतिहिंसितम्।
तत्र दोषं न पश्यामि शठे शाठ्यं समाचरेत्॥
(महाभारत विदुरनीति)
अर्थात् जो (आपके प्रति) जैसा व्यवहार करे उसके साथ वैसा ही व्यवहार करो। जो तुम पर हिंसा करता है, उसके प्रतिकार में तुम भी उस पर हिंसा करो! मैं इसमें कोई दोष नहीं मानता, क्योंकि शठ के साथ शठता करना ही उचित है।और जब शिवाजी ने अफजल खां का वध किया, तो जाहिर तौर पर उनकी यही शिक्षा उनकी प्रेरणा थी। जबकि उनके अधिकांश मंत्रियों की समझ से यह सारी बातें परे थीं। शिवाजी महाराज ने घुड़सवारी, तलवारबाजी और निशानेबाजी दादोजी कोंडदेव से सीखी थी। तभी तो इतिहासकार आरसी मजूमदार ने लिखा कि आजादी के लिए शिवाजी के जीवन को आदर्श बनाना होगा।
शिवाजी ने हमेशा उन लोगों की मदद की जो हिंदू धर्म में लौटना चाहते थे। उन्होंने प्राचीन हिन्दू राजनीतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और फारसी के स्थान पर मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया। शिवाजी के राज्याभिषेक समारोह में हिन्दू स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था।
बताया कि औरंगजेब ने शिवाजी की चुनौती का सामना करने के लिए बीजापुर की बड़ी बेगम के आग्रह पर अपने मामा शाइस्ता खान को दक्षिण भारत का सूबेदार बना दिया। शाइस्ता खान ने डेढ़ लाख सेना लेकर पुणे में 3 साल तक लूटपाट की। शिवाजी ने 350 मावलों के साथ उस पर गुरिल्ला (छापामार) हमला कर दिया। शाइस्ता खान अपनी जान बचाकर भागा। शाइस्ता खान को इस हमले में अपनी 3 उंगलियां गंवानी पड़ी। औरंगजेब ने शाइस्ता खान को दक्षिण भारत से हटाकर बंगाल भेज दिया। लेकिन शाइस्ता खान अपने 15,000 सैनिकों के साथ फिर आया और शिवाजी के कई क्षेत्रों में आगजनी करने लगा। जवाब में शिवाजी ने मुगलों के क्षेत्रों में लूटपाट शुरू कर दी। शिवाजी ने 4 हजार सैनिकों के साथ सूरत के व्यापारियों को लूटने का आदेश दिया। उन्ही के कारण औरंगजेब मृत्यु से पहले दिल्ली की सिंहासन पर एक भी दिन चैन से नही सो पाया था। यही नही कैलाश मानसरोवर से लेकर हिन्द महासागर तक की भूमि पर शिवाजी की दृष्टि थी।
शिवाजी ने अपने धर्म की रक्षा और संवर्धन के लिए ब्राह्मणों, गायों और मंदिरों की रक्षा को अपनी राज्यनीति का लक्ष्य घोषित किया था, लेकिन उस समय प्रचलित छुआछूत एक बड़ी बाधा थी। सन् 1674 तक पश्चिमी महाराष्ट्र में स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बावजूद शिवाजी का राज्याभिषेक नहीं हो सका था। ब्राहमणों ने उनका घोर विरोध किया था, क्योंकि उनके अनुसार शिवाजी क्षत्रिय नहीं थे। राज्याभिषेक के लिए उन्हें क्षत्रियता का प्रमाण चाहिए था। बालाजी राव जी ने शिवाजी के मेवाड़ के सिसोदिया वंश से संबंध के प्रमाण भेजे, जिसके बाद रायगढ़ में उन्होंने शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया।
शिवाजी महाराज ने अपना साम्राज्य बाहुबल के साथ-साथ बुद्धिबल से स्थापित किया था। उन्होंने स्थापित साम्राज्यों और सल्तनतों की युद्ध-मशीनरी में एक प्रमुख दोष खोज निकाला और अपनी मराठा सेना में चेन-आफ-कमांड को सर्वोच्च शक्तियां दीं।
पाथेय से पूर्व मुख्य वक्ता एडवोकेट तिलकधारी जी, जिला संघचालक शरद चंद्र जी एवं नगर संघचालक अशोक सोनी जी ने शिवाजी के चित्र पर पुष्पार्चन कर नमन किया। तत्पश्चात गणगीत एवं अमृत वचन के उपरान्त जिला पर्यावरण प्रमुख संजय सेठ जी ने “मेरी मातृभूमि मंदिर है” गणगीत प्रस्तुत किया।
इस अवसर पर प्रान्त सामाजिक सद्भाव प्रमुख शिवमूर्ति जी, विभाग धर्म जागरण प्रमुख वीरेंद्र जी, जिला कार्यवाह चन्द्रमोहन जी, सह नगर संघचालक प्रभुजी, नगर पालिका अध्यक्ष श्यामसुंदर केशरी, जिला बौद्धिक प्रमुख गुंजन जी, नगर कार्यवाह लखन जी, सह नगर कार्यवाह शैलेष जी, नगर शारीरिक प्रमुख अखिलेश जी, नगर प्रचार प्रमुख विमलेश जी, नगर व्यवस्था प्रमुख विनोद जी, सह व्यवस्था प्रमुख प्रदीप जी, सभासद नीरज बैजू, अश्वनी जी सहित नगर के विभिन्न शाखाओ के मुख्य शिक्षक, शाखा कार्यवाह एवं लगभग पाच सौ पूरी गणवेश धारी स्वयंसेवक गण मौजूद रहे।