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श्रीमद भागवत कथा के तृतीय दिवस ध्रुव चरित्र, प्रहलाद चरित्र व भगवान नरसिंह के अवतार की कथा सुन मंत्र मुग्ध हुए श्रद्धालु

 

ब्यूरो चीफ मुकेश मिश्र

अंबेडकरनगर – अहिरौली थाने के स्थानीय बाजार के उत्तर में स्थित रेलवे लाइन के पास लोकापुर गांव के ककरहिया बाग धाम में हो रहे श्री होमात्मक यज्ञ एवं संगीतमयी श्रीमद भागवत कथा के तृतीय दिवस श्रीमद भागवत कथा में कथावाचिका साध्वी सृष्टिलता रामायणी द्वारा व्यास मंच का पूजा किया गया पूजन के बाद मुख्य यजमान काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी के अर्चक पंडित तीर्थराज त्रिपाठी व जय हनुमान जी सेवा समिति के अध्यक्ष बृजेश मिश्र हनुमान भक्त ने व्यास मंच पर विराजमान साध्वी जी का फुलमलाओ से स्वागत कर कथा के प्रारंभ में आरती किया इसके बाद साध्वी जी ने अपने मुखार बिंद से श्रद्धालुओं को कथा का अमृत पान कराया साध्वी जी ने आज की कथा में विस्तार से ध्रुव चरित्र, प्रहलाद चरित्र, और भगवान नरसिंह के अवतार की कथा कही।

साध्वी जी ने सर्वप्रथम ध्रुव चरित्र की कथा में प्रकाश डालते हुए बताया कि स्वायंभुव मनु की पत्नी का नाम शतरूपा था। इन्हें प्रियव्रत, उत्तानपाद आदि 7 पुत्र और देवहूति, आकूति तथा प्रसूति नामक 3 कन्याएं हुई थीं।

शतरूप के पुत्र उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो पत्नियां थीं। राजा उत्तानपाद के सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र उत्पन्न हुए। स्वायंभुव मनु के दूसरे पुत्र प्रियव्रत ने विश्वकर्मा की पुत्री बहिर्ष्मती से विवाह किया था जिनसे आग्नीध्र, यज्ञबाहु, मेधातिथि आदि 10 पुत्र उत्पन्न हुए। प्रियव्रत की दूसरी पत्नी से उत्तम, तामस और रैवत- ये 3 पुत्र उत्पन्न हुए, जो अपने नाम वाले मन्वंतरों के अधिपति हुए। महाराज प्रियव्रत के 10 पुत्रों में से कवि, महावीर तथा सवन ये 3 नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे और उन्होंने संन्यास धर्म ग्रहण किया था उत्तानपाद की सुनीति पहली पत्नी थी जिसका पुत्र ध्रुव था।

सुनीति बड़ी रानी थी लेकिन राजा सुनीति के बजाय सुरुचि और उसके पुत्र को ज्यादा प्रेम करता था। एक बार राजा अपने पुत्र ध्रुव को गोद में लेकर बैठे थे तभी वहां सुरुचि आ गई। अपनी सौत के पुत्र ध्रुव को गोद में बैठा देखकर उसके मन में जलन होने लगी। तब उसने ध्रुव को गोद में से उतारकर अपने पुत्र को गोद में बैठाते हुए कहा, राजा की गोद में वही बालक बैठ सकता है और राजसिंहासन का भी अधिकारी हो सकता है जो मेरे गर्भ से जन्मा हो।

तू मेरे गर्भ से नहीं जन्मा है। यदि तेरी इच्छा राज सिंहासन प्राप्त करने की है तो भगवान नारायण का भजन कर। उनकी कृपा से जब तू मेरे गर्भ से उत्पन्न होगा तभी सिंहासन प्राप्त कर पाएगा।
पांच साल का अबोध बालक ध्रुव सहमकर रोते हुए अपनी मां सु‍नीति के पास गया और उसने अपनी मां से उसके साथ हुए व्यवहार के बारे में कहा। मां ने कहा, बेटा ध्रुव तेरी सौतेली मां से तेरे पिता अधिक प्रेम करते हैं। इसी कारण वे हम दोनों से दूर हो गए हैं।

अब हमें उनका सहारा नहीं रह गया। हमारे सहारा तो जगतपति नारायण ही है। नारायण के अतिरिक्त अब हमारे दुख को दूर करने वाला कोई दूसरा नहीं बचा । पांच साल के बालक के मन पर दोनों ही मां के व्यवहार का बहुत गहरा असर हुआ और वह एक दिन घर छोड़कर चला गए। रास्ते में उसे नारदजी मिले।

नारद मुनि ने उससे कहा बेटा तुम घर जाओ तुम्हारे माता पिता चिंता करते होंगे। लेकिन ध्रुव ने नहीं माना और कहा कि मैं नारायण की भक्ति करने जा रहा हूं। तब नारद मुनि ने उसे
ॐ नमो: भगवते वासुदेवाय
मंत्र की दीक्षा दी। वह बालक यमुना नदी के तट पर मधुवन में इस मंत्र का जाप करने लगा।

फिर नारद उसके पिता उत्तानपाद के पास गए तो उत्तानपाद ने कहा कि मैंने एक स्त्री के वश में आकर अपने बालक को घर छोड़कर जाने दिया। मुझे इसका पछतावा है। फिर नारद जी ने कहा कि अब आप उस बालक की चिंता न करें। उसका रखवाला तो अब भगवान ही है।

भविष्य में उसकी कीर्ति चारों ओर फैलेंगी। उधर बालक की कठोर तपस्या से अत्यंत ही अल्पकाल में भगवान नारायण प्रसन्न हो गए और उन्होंने दर्शन देकर कहा हे बालक मैं तेरे अंतरमन की व्यथा और इच्छा को जानता हूं। तेरी सभी इच्छापूर्ण होगी और तुझे वह लोक प्रदान करता हूं जिसके चारों और ज्योतिचक्र घुमता रहता है और सूर्यादि सभी ग्रह और सप्तर्षि नक्षत्र जिसके चक्कर लगाते रहते हैं। प्रलयकाल में भी इस लोक का नाश नहीं होगा।

सभी प्रकार के सर्वोत्तम ऐश्वर्य भोगकर अन्त समय में तू मेरे लोक को प्राप्त करेगा। ध्रुव चरित्र की कथा से श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध करने के पश्चात साध्वी जी ने प्रहलाद चरित्र और नरसिंह भगवान की कथा कही साध्वी जी ने बताया एक बार प्रहलाद जी अपने पाठशाला से घर जा रहे थे उन्होंने पाठशाला के रास्ते में देखा कि एक कुम्हार मटके पकाने के लिए आवे में रखे थे। लकड़ी तथा उपलों से ढ़क रखा था। सुबह अग्नि लगानी थी। रात्रि में एक बिल्ली ने अपने बच्चे उसी आवे मटके पकाने का स्थान में एक मटके में रख दिए। प्रातः काल बिल्ली अन्य घर में भोजन के लिए चली गई। कुम्हार ने आवे को अग्नि लगा दी।

आग प्रबल होकर जलने लगी। कुछ समय पश्चात् बिल्ली आई और अपने बच्चे को आपत्ति में देखकर म्याऊँ-म्याऊँ कर रोने लगी। तभी कुम्हारी को समझते देर ना लगी कि बिल्ली के बच्चे खतरे में उन्हे बचाने के लिए वह परमात्मा से अर्ज करने लगी और रोने लगी कही हे प्रभु हे राम हम सबको को महापाप लगेगा। इस बिल्ली के बच्चों की रक्षा करो। बार-बार यह कहकर पुकार कर रही थी। तभी उस समय भक्त प्रहलाद उसी रास्ते से पाठशाला जा रहा थे और कुम्हारी को रोते हुए देखा तो उसके निकट गए।

वह हे राम हे विष्णु भगवान हे परमेश्वर इन बिल्ली के बच्चों को बचाओ, हमे पाप लगेगा यह कह रही थी। प्रहलाद ने उस माई से कहा कि हे माता! आप राम ना कहो। मेरे पिता जी का नाम लो, नहीं तो आपको मार डालेंगे। कुम्हारी ने बताया कि इस आवे में बिल्ली के बच्चे रह गए हैं। हमको पता नहीं चला। भगवान से इन बच्चों की सुरक्षा के लिए प्रार्थना कर रही हूँ। इस भयंकर अग्नि से राजा हिरण्यकशिपु नहीं बचा सकते, परमात्मा ही बचा सकते हैं।

प्रहलाद भक्त ने कहा, माई जब आप घड़े निकालें तो मुझे बुलाना। ऐसी शीतल हवा चली कि अग्नि बुझ गई। कहते हैं कि एक महीने में आवे में रखे घड़े पकते थे। उस समय अढ़ाई दिन में आवा पक गया। प्रहलाद भक्त को बुलाकर आवे से मटके निकाले गए। जिस घड़े में बिल्ली के बच्चे थे, वह घड़ा कच्चा था।

बिल्ली के बच्चे सुरक्षित थे। अन्य सब घड़े पके हुए थे। यह दृश्य देखकर प्रहलाद ने मान लिया कि ऐसी विकट परिस्थिति में मानव कुछ नहीं कर सकता। परमात्मा ही समर्थ हैं। कुम्हारी से भक्त प्रहलाद जी ने कहा था कि माता जी! यदि भगवान ने बिल्ली के बच्चे बचा दिए तो मैं भी परमात्मा का ही नाम जपा करूँगा। अपने पिता का नाम जाप नहीं करूँगा।

और भक्त प्रहलाद अपने पिता का नाम छोड़ भगवान का नाम लेने लगे जिस बात को लेकर प्रहलाद के पिता हिरण्यकशिपु अपने बेटे से नाराज रहने लगा और बार बार भगवान का नाम जपने के लिए मना किए जब प्रहलाद ने भगवान का नाम लेना बंद नहीं किया तो प्रहलाद को मारने के लिए अनेकों बार प्रयास किया जिसमे वो विफल रहा।

हिरण्यकशिपु ने श्री ब्रह्मा जी की भक्ति करके वरदान प्राप्त कर रखा था कि मैं सुबह मरूँ ना शाम मरूँ, दिन में मरूँ न रात्रि में मरूँ, बारह महीने में से किसी में ना मरूँ, न अस्त्र शस्त्र से मरूँ, पृथ्वी पर मरूँ ना आकाश में मरूँ। न पशु से मरूँ, ना पक्षी, ना कीट से मरूँ, न मानव से मरूँ।

न घर में मरूँ, न बाहर मरूँ। हिरण्यकशिपु ने प्रहलाद को मारने के लिए एक लोहे का खम्बा अग्नि से गर्म करके तथा तपाकर लाल कर दिया। प्रहलाद जी को उस खम्बे (च्पससंत) के पास खड़ा करके हिरण्यकशिपु ने कहा कि क्या तेरा प्रभु इस तपते खम्बे से भी इससे तेरी जलने से रक्षा कर देगा प्रहलाद भक्त भयभीत हो गए कि परमात्मा इस जलते खम्बे में कैसे आयेंगे, हिरण्यकशिपु ने कह देखूँ तेरा भगवान तेरी कैसे रक्षा करता है और उसी खंभे में प्रहलाद जी को बांध दिया डर के कारण प्रहलाद जी ने परमात्मा का नाम स्मरण करने लगे।

हिरण्यकशिपु ने जैसे ही खंभे पे मुक्के से मारा उसी समय खंभे के अंदर से नरसिंह रूप धारण करके प्रभु प्रकट हुए। हिरण्यकशिपु भयभीत होकर भागने लगा। नरसिंह प्रभु ने उसे पकड़कर अपने गोद में घुटनों के पास हवा में लटका दिया। और हिरण्यकशिपु का उदर चीर कर उसका वध किया और उसका उद्धार किया।

आज की कथा के समापन की आरती के समय विदुषी महाविद्यालय के प्रबंधक विजयकांत दुबे,दुर्गा पाण्डेय,प्रमोद तिवारी,रमेश मिश्र,अरविंद मिश्र,विनोद तिवारी,युवा भाजपा नेता शैलेश तिवारी ,पत्रकार मुकेश मिश्र, सोनू पाठक,सुमित शुक्ला,विशाल उपाध्याय,अविनाश तिवारी, वरिष्ठ भाजपा नेता संतोष सिंह, महिंद्रा एंड महिंद्रा के सीईओ अमित सिंह,वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मिश्र,राजन मिश्र,दिनेश पाण्डेय,अमित तिवारी,कौशल गुप्ता, पुलिस की दल बल के साथ अहिरौली थानाध्यक्ष रितेश पांडेय,आदि सैकड़ों श्रद्धालु कथा का अमृत पान कर आरती किए।।

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