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शिक्षा में आंचलिकता को देना होगा महत्व: प्रो. संजीव दूबे

 

रिपोर्ट ब्यूरो गोरखपुर

गोरखपुर। पाठ्यक्रम साध्य है न कि साधन। पाठ्यक्रम ज्ञानार्जन का एक व्यवस्थित आधार है। पाठ्यक्रम से हमको क्या हासिल हो रहा और उसका उपयोग क्या है, यह अत्यधिक विचारणीय है। नई शिक्षा नीति २०२० ने इस बात को दृष्टिगत रखते हुए पाठ्यक्रमों को उद्देश्यपरक बनाने पर विशेष ध्यान दिया है तथा मानविकी एवं विज्ञान के बीच की खाई को पाटने का प्रयास किया है।   क्षेत्रीय,आंचलिक, स्थानीय और मातृ भाषाओं को विशेष सम्मान देते हुए उनको शिक्षा का माध्यम बनाने हेतु विशेष पहल की जा रही है। शिक्षा में स्थानीयता के महत्व को बढ़ाना होगा। पाठ्यक्रम का परिणाम आधारित होना, संप्रेषणीय होना, समस्या समाधान उन्मुख होना, सहकारिता और नैतिकता को प्रेरित करने वाला होना उसकी सफलता का आधार होता है।

उक्त वक्तव्य गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय, गांधीनगर के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो० संजीव कुमार दूबे  ने यूजीसी एचआरडीसी द्वारा आयोजित ऑनलाइन फैकल्टी इंडक्शन प्रोग्राम के तीसरे तकनीकी सत्र में बतौर मुख्य वक्ता “करिकुलम डिजाइनिंग, आउटकम बेस्ड लर्निंग एंड सीबीसीएस” शीर्षक पर अपने व्याख्यान में दिया।
प्रथम तकनीकी सत्र में दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर के अंग्रेजी विभाग के प्रो० गौर हरि बेहरा ने “मुक्ति के रूप में शिक्षा” विषयक अपने व्याख्यान में कहा कि शिक्षा एक रचनात्मक प्रयास है जो हमे अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। वर्तमान शिक्षा पद्धति औपनिवेशिक शिक्षा व्यवस्था पर आधारित है जो इंसान को मशीन बनाती और समझती है। इसने हमारी सोचने समझने की क्षमता का ह्रास किया है। शिक्षा के व्यवसायीकरण और पूंजी के दुष्प्रभाव ने ज्ञान परंपरा का सर्वाधिक पतन किया है।
द्वितीय सत्र में माइक्रो टीचिंग सेशन का आयोजन हुआ,  जिसकी अध्यक्षता लखनऊ विश्वविद्यालय के अंग्रेजी एवम आधुनिक भाषा विभाग के प्रो०शिव गोविंद पुरी ने की। उन्होंने कहा कि शिक्षक को अपने विषय वस्तु का प्रदर्शन करने की विभिन्न विधियों का ज्ञान होना चाहिए। विषय के अनुरूप माध्यमों एवम विधियों का चयन करना एक कुशल शिक्षक का सर्वोत्तम गुण है।
समन्वयक प्रो. अजय कुमार शुक्ल ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ रोजगार प्रदान करना ही नहीं है। बदलती परिस्थितियों में शिक्षा प्रणाली में भी आमूलचूल परिवर्तन करने की आवश्यकता है। शिक्षा को बाजार के हवाले कर देना मानवता के लिए विनाशकारी साबित होगा।
कार्यक्रम के आरंभ में अतिथि परिचय और स्वागत निदेशक प्रो०रजनीकांत पांडेय ने किया तथा सभी वक्तागण का आभार ज्ञापन सह समन्वयक डॉ मनीष पांडेय ने किया। अलग अलग सत्रों का संचालन डॉ तनु श्रीवास्तव, डॉ अकील अहमद, डॉ प्रियतोष मिश्र एवम डॉ नरोत्तम तिवारी द्वारा किया गया।

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