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अमन और खुशहाली का पैगाम है ईद

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सिसवा बाजार महराजगंज
भारत त्योहारों का देश है यहां होली,दिवाली,क्रिसमस,वैशाखी, ईद सहित तमाम त्यौहार सभी भारतवासी मिलजुल कर मनाते हैं। सभी त्यौहार अपने आप में बहुत खास होते हैं।

अगर हम बात करते हैं ईद के त्यौहार की तो मोमिनो के लिए यह तोहफा है और बच्चों के लिए ईदी है ईद। बरकत वाली मुबारक महीने रमजान के बाद आती है ईद। रमजान का महीना इस्लामी कैलेंडर में नवा और सबसे आखरी पवित्र महीना माना गया है इसलिये यह अल्लाह की इबादत करने वाला एक पाक महीना जिसमें रोजा रखा जाता है, रात भर जागकर खुदा को याद किया जाता है, पाबंदी से नमाज कुरान पढ़ा जाता है, ज्यादा से ज्यादा चीजें लोगों में बांटी जाती हैं।

दिन भर का ज्यादा वक्त खुदा की इबादत में लगाया जाता है। मस्जिदों में पूरे साल से ज्यादा इस महीने रौनक देखी जाती है। बच्चे,बूढ़े और जवान सभी रोजा रखते हैं, नमाज पढ़ते हैं और हर बुरे काम से खुद को बचाते हैं। शव्वाल की पहली चांद वाली रात ईद की रात होती है। इस रात को चांद रात भी कहा जाता है। चांद देखने के बाद ही ईद उल फितर का ऐलान किया जाता है। चांद रात जैसी रोनक पूरे साल और किसी रात में नहीं देखी जाती। सारी रात दुकानें खुली रहती हैं। लोग ईद के कपड़े , चप्पल जूते, कंगन, चूड़ियां, सजावट के सामान व बर्तन आदि खरीदते हैं। अपने घरों में मीठे पकवान बनाते हैं। तरह-तरह की चीज़े बनाते हैं घर को सजाते हैं और एक दूसरे से गले मिलकर के बधाई देते हैं। अपनी सभी रिश्तेदारों को याद करके गिले-शिकवे दूर करते हैं।खुशियो वाला यह त्यौहार दुनिया में अमन और खुशाली लाता है। इस्लाम धर्म का यह त्यौहार भाईचारे का संदेश देता है। इस दिन लोग सुबह नए कपड़े पहनते हैं नमाज अदा करते हैं। मस्जिदों और ईदगाह में जाते हैं गरीबों को पैसा देते हैं अपने परिवार कि साथ-साथ अपने मुल्क में सलामती अमन चैन की दुआ करते हैं। हालाकि बीते कुछ सालों में कोरोना के संक्रमण की वजह से इसकी रौनक कुछ कम थी लेकिन उसमें भी लोगों ने एक दूसरे को बधाई दी मीठे पकवान बनाए और कोविड गाइडलाइन का पालन करते हुए नमाज अदा की। यह दिन यह बताता है कि इंसान अपनी इंसानियत के लिए इच्छाओं का त्याग करके, खुदा के लिए रुसी रखी और फिर इसका त्योहार आने पर जी भर के मीठे पकवान खाएं और खिलाएं। ईद उल फितर है तो 624 ईसवी में सबसे पहले मनाई गई थी।
गरीबों को दान देना इसलिए जरुरी है क्योंकि जो करीब मजदूर है वह भी ईद में नए कपड़े पहन सके। इस तरह से ईद समानता का संदेश भी देता है। जिन मुसलमानों के पास 52 तोला सोना और साढ़े सात तोला चांदी हो उस पर जकात फर्ज है। ईद के दिन सुबह की प्रार्थना से पहले हर मुसलमान का फर्ज होता है कि वह ईद का दान दे, क्योंकि ईद आने पर एक अलग तरह की खुशी का अहसास होने लगता है। बच्चों बड़ों सबको नए कपड़े लेने होते हैं। चेहरे पर खुशी होती है। रमजान ठीक से गुजर गया इसका सुकून दिखाई देता है। गरीब से गरीब आदमी भी ईद पर कैसे जोड़कर घर परिवार के लिए खुशियों का सामान जोड़ता है। सभी लोग पूरी रमजान के रोजे रखने के बाद अल्लाह से अपने और अपने परिवार और मुल्क देश की सलामती के लिए के लिए दुआ करते हैं। आखिरी शाम जब खूबसूरत चांद का दीदार आसमान में होता है तो यह मान लिया जाता है कि अगले दिन ईद है और खुशियां बांटनी शुरू हो जाती हैं। ईद का अर्थ खुशियों के त्यौहार से है। ईद के त्यौहार ने हिंदुस्तान की मिट्टी में प्यार को घोले रखा है। यहां के लोगों में बेपनाह खुशियां बाटी और आपसी मोहब्बत को कायम रखा है। ईद के सर जी हमारी जिंदगी में खुशियां बार-बार आती हैं। हम अपने और दूसरों को खुश रखने की कोशिश करते हैं। हम सभी ने मुंशी प्रेमचंद की कहानी ईदगाह तो जरूर पढ़ी होगी। जिसमें हम इतनी के दिन अपनी पूरी दादी अम्मा को ईद चिमटा ला कर देता है और वह खुशी से रोने लगती है। इसका अर्थ यह हुआ कि हम एक के दिन अपने परिवार और दोस्तों को तोहफे दे गिफ्ट करें, उनको खुशी दे। ईद की कहानी में यह संदेश छुपा है कि हम वाकई खुश होना चाहते हैं तो हमें पहले दूसरों को खुश करना होगा। इसलिए ईद के त्यौहार को हिंदू व अन्य धर्म के लोग भी भाई सारी के साथ मनाती हैं और अपने मुस्लिम साथियों को ईद की मुबारकबाद देते हैं। ईद रमजान की 30 रोजी के खत्म होने के अगले दिन मनाई जाती है। ईद उल फितर को मीठी ईद और ईद-उल-जुहा को बकरीद कहते हैं इस्लाम में। ईद को सबसे खुशी का दिन माना जाता है। कुरान के मुताबिक ऐसा माना जाता है कि अल्लाह ईद के दिन अपने सभी बंधुओं को कुछ ना कुछ बख्शीश और इनाम देते हैं, इसलिए इस दिन को ईद कहा जाता है और मिलजुलकर ईद मनाई जाती है। ईद के दिन सभी बच्चों को उनके अब्बू अम्मी ईदी यानी पैसे भी देते हैं और साथ ही कपड़े मिठाइयां, सेवइयां आदि चीजें बांट कर सवाब कमाते हैं। बख्शीश और इनाम भी देते हैं। इसी को असली ईद कहते हैं। पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बद्र की लड़ाई में जीत हुई थी और इसी जीत की खुशी में उन्होंने सभी लोगों को मिठाईयां बांटकर उनका मुंह मीठा करवाया था। बस तभी से इस दिन को मीठी ईद के रूप में मनाया जाता है। ईद उल फितर के ठीक ढाई महा के बाद ईद उल अज़हा आती है। ईद उल अजहा को बकरीद भी कहते हैं। ईद के दिन मुसलमान दान करते हैं, जकात देते हैं रमजान के पाक महीने को विदा करते हैं और खुदा का शुक्र अदा करके जरूरतमंद लोगों की मदद करके उन्हें खुशियां बांट कर ईद मनाते हैं। ईद केवल एक त्यौहार ही नहीं बल्कि एक जज्बा है जिसमें हम अपने परिवार समाज देश और पूरी दुनिया में खुशहाली बांट कर नेकी कर सकते हैं। ईद का असली मतलब यही है कि हमीद की खुशियां अकेले न मनाएं बल्कि ऐसे लोगों के साथ घुले मिले जो दुख और तकलीफ से गुजर रहे हैं और उनको सहारा दे। असली ईद वही है जो आपस में प्यार और खुशी को बढ़ाएं यानी खुशियों वाली ईद आए।अपनी खुशियों के साथ साथ सबका दर्द खरीद कर मिल जुल कर भाईचारे के साथ सब मनाएं ईद। गिले-शिकवे भूल कर सबको गले लगाओ। खुशियां बांटो खुशियां पाओ।” इस ईद के त्योहार पर हो जाएं हर भारतवासी को एक दूसरे से प्यार, तभी होगा देश का विकास और मानवता का प्रसार।रिपोर्ट फणीन्द्र कुमार मिश्र

 

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