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इतिहास के आईने में बापू और घुघली बाजार

रिपोर्ट ibn टीम
घुघली महराजगंज
अखंड भारत वर्ष के स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक कहे जाने वाले राष्ट्रपिता ‘महात्मा गांधी’ को सुनने व करीब से देखने का मौका घुघली व महराजगंज के लोगों को भी मिला था।

बापू का संबोधन सुन यहां के लोग आजादी पाने के लिए सड़कों पर उतर आए थे। उस दौर में विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई थी और ‘अंग्रेजों भारत छोड़ों’ का नारा बुलंद हुआ था। बताते चले कि घुघली स्थित बैकुंठी नदी का तट चार अक्टूबर 1929 को खचाखच भरा था। हर तरह भारत माता की जय और महात्मा गांधी जिंदाबाद के नारे गूंज रहे थे। एक दिन बाद पांच अक्टूबर को यही नजारा महराजगंज के (वर्तमान में सक्सेना चौराहे ) पर हुई सभा में भी देखने को मिला था।समयावधि लंबी होने के चलते उस दौर के लोग तो अब नहीं हैं, लेकिन पीढ़ी दर पीढ़ी बापू के संबोधन और उनके आगमन के एक-एक लम्हें को यहां की युवा पीढ़ी ने बड़ी तबीयत से सहेजा है।
विदित रहे कि महात्मा गांधी चार अक्टूबर 1929 को बैकुंठी नदी के तट पर एक बरगद के पेड़ के नीचे सभा को संबोधित करने के बाद रात को कांग्रेसी कार्यकर्ता मुंशी छत्रधारी लाल के आवास पर गुजारे थे। रात में ही उन्होंने क्षेत्र के प्रमुख कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर आंदोलन को जन-जन तक पहुंचाने का आह्वान किया। इस दौरान उन्होंने छत्रधारी लाल की पत्नी सरबती देवी से मूंग की दाल व रोटी खाने की इच्छा व्यक्त की थी। महात्मा गांधी का घुघली दौरा कांग्रेसी कार्यकर्ता मुंशी छत्रधारी लाल की पहल के बाद ही निर्धारित हुआ था। छत्रधारी लाल ने घुघली चीनी मिल का गेस्टहाऊस बापू को ठहरने के लिए बुक करा दिया था, पर बापू के घुघली पहुंचने के पहले ही मिल प्रबंधक अंग्रेजी हुकूमत के डर से गेस्ट हाऊस की चाभी लेकर कही चले गए। पूरा मामला समझने के बाद मुंशी छत्रधारी लाल ने अपने घर पर ही उनके ठहरने की व्यवस्था की। 1929 में जिस घर में बापू ठहरे थे, वर्तमान में वहां एक निजी जूनियर हाईस्कूल संचालित है।

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