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वाराणसी-बीएचयू मे बीएमए अनुसंधान व शिक्षण शुरू करने के लिए भारतीय मानक ब्यूरो से हुआ समझौता

 

टीम आईबीएन न्यूज

वाराणसी । भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय), वाराणसी ने भारतीय मानक को अनुसंधान और शिक्षण के एक अभिन्न अंग के रूप में प्रस्तुत करने के लिए भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं । यह पहल शिक्षाविदों की सक्रिय भागीदारी के लिए प्रतिष्ठित संस्थानों के साथ बीआईएस के भागीदारी को संस्थागत बनाने की दिशा में है । हाल ही में संस्थानों में ‘बीआईएस मानकीकरण चेयर प्रोफेसर’ की स्थापना के लिए बीआईएस के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए ।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय), वाराणसी एक राष्ट्रीय महत्व का संस्थान है और बीआईएस मानकीकरण प्रमाणन का एक राष्ट्रीय मानक निकाय है, दोनों के बीच साझेदारी प्रौद्योगिकी के विकास के क्षेत्र में एक बड़ा प्रभाव है ।

आईआईटी (बीएचयू), वाराणसी के निदेशक आचार्य प्रमोद कुमार जैन ने बताया कि इन चेयर प्रोफेसरों की स्थापना से इसमें भाग लेने वाले संस्थानों में विज्ञान और विभिन्न विषयों के क्षेत्र में शिक्षण और अनुसंधान व विकास में उत्कृष्टता और नेतृत्व को बढ़ावा मिलेगा ।

उन्होंने नए मानकों को तैयार करते समय स्टार्ट-अप्स और इन्क्यूबेशन केंद्रों के साथ जुड़ने की आवश्यकता और साथ ही मौजूदा मानकों के साथ उनके अनुपालन की भी संकल्पना की है ।

आईआईटी (बीएचयू), वाराणसी और बीआईएस जैसे प्रीमियम शैक्षणिक संस्थानों के बीच समझौता ज्ञापन मानकीकरण प्रक्रिया के क्षेत्र में युवा प्रतिभाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करते हुए अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं को सुगम बनाकर मानक निर्माण गतिविधि को मजबूत करेगा ।

इसके अलावा, कई सेमिनार, सम्मेलन, कार्यशालाएं, संगोष्ठी या व्याख्यान, प्रशिक्षण और अल्पकालिक शिक्षा कार्यक्रम संयुक्त रूप से समझौता ज्ञापन के तहत आयोजित किए जाएंगे ।

प्रौद्योगिकी उन्मुख उत्पादों और सेवाओं के विकास को बढ़ावा देने के लिए प्रौद्योगिकी नवाचार और मानकों के विकास को एक साथ जोड़ा जाना चाहिए ।

जबकि हम भारत को एक आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण के रूप में “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” पर जोर दे रहे हैं, स्वदेशी तकनीक के अच्छे मानकों को सुनिश्चित करना आवश्यक है। संस्थान के अधिष्ठाता (अनुसंधान एवं विकास) प्रो. विकाश कुमार दुबे ने बताया कि यह समझौता ज्ञापन इस दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है ।

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