19 अगस्त बागी बलिया का वो दिन है जिसे बलिया बलिदान दिवस के रूप में जाना जाता है
बलिया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में आजाद हुए उत्तर प्रदेश का बलिया जिला अपनी आजादी का वर्षगांठ मना रहा है। महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन की आग में पूरा जिला जल रहा था। जनाक्रोश चरम पर था। जगह- जगह थाने जलाये जा रहे थे। सरकारी दफ्तरों को लूटा जा रहा था। रेल पटरियां उखाड़ दी गई थी। जनाक्रोश को कुचलने के लिए अंग्रेजी सरकार ने आंदोलन के सभी मुख्य नेताओं चित्तू पाण्डेय और पं. राम अनन्त पाण्डेय को जेल में बंद कर दिया था। लेकिन लोगों का गुस्सा थमने का नाम नहीं ले रहा था। 19 अगस्त को लोग अपने घरों से सड़क पर निकल पड़े थे।
जिले के ग्रामीण इलाके से शहर की ओर आने वाली हर सड़क पर जन सैलाब उमड़ पड़ा था। भारी भीड़ शहर की ओर बढ़ रही थी। अफसरों ने अपने परिवार को पुलिसलाइन में सुरक्षित कर दिया था। जिलाधिकारी को जब खुफिया पुलिस की रिपोर्ट मिली कि नगर के विभिन्न सड़कों से जन-समूह उमड़ा हुआ चला आ रहा है और उनका पहला धावा अपने नेताओं को छुड़ाने के लिए जेल पर होने वाला है और उसके बाद खजाने और कचहरी पर भी हमला करने को योजना बनी है, तो जिलाप्रशासन और पुलिस कप्तान घबरा उठे और उन्होंने तय किया कि सभी राजनैतिक बंदियों को जेल से छोड़ दिया जाय। उसी समय उसने बन्दियों को छोड़ने का आदेश दिया।
इंकलाब के नारे लगाने वाली भीड़ की आंखों में खून उतर आया था कलेक्टर ने खजाने की नोटों के नम्बर नोट कर उन्हें जलाने का आदेश दिया। इसके बाद क्रांति मैदान में हुई जनसभा में कांग्रेस के नेताओं ने भीड़ को टाउन हाल में चलने को कहा। ठसा-ठस भरे क्रांति मैदान (टाउन हाल) और उसके बाहर सड़कों पर खड़ी जनता को पं.रामअनन्त पांडेय, राधामोहन सिंह, राधागोविन्द सिंह, विश्वनाथ चौबे आदि ने सम्बोधित किया। कुछ देर बाद चित्तू पांडेय टाउन हाल बुलाये गये। चित्तू पांडेय ने ठेठ भोजपुरी में भीड़ को सम्बोधित किया। बलिया में अपना राज स्थापित हो गइल।
वहीं बलिया के आजाद होने की घोषणा हुई। चित्तू पाण्डेय आजाद बलिया के पहले कलेक्टर घोषित किए गए और पं.राम अनन्त पाण्डेय डिप्टी कलेक्टर एवं महानंद मिश्रा को एस पी बनाया गया था।
सभागार — अंकुर पाण्डेय