जरा विचार करें कि तीर्थ राज प्रयाग में 144 वर्ष बाद आए इस आध्यात्मिक महाकुंभ मे जहां शंकराचार्यों,जगत गुरूओ,परमहंसों, सरस्वती के उपाधियों से मंडित धर्माचार्यों व दुर्लभ साधु,संतों के संगम मे मात्र इन तीन चेहरों पर ही मीडिया ने सारा महाकुंभ खत्म कर दिया। तन की खूबसूरती (हर्षा),आंखों की खूबसूरती (मोनालिसा),व एक उच्च शिक्षित व्यक्ति (अभय सिंह) आईआईटीएन बाबा पर। क्या यही कुंभ की महत्ता हैं ?
यदि महाकुंभ में आप यही खोज पाए तो फिर आपको अपने सनातनी होने पर दोबारा विचार करना चाहिए.. क्या यही महाकुंभ की महत्ता हैं.. ?
अध्यात्म के इतने बड़े समंदर तीर्थ राज प्रयाग संगम से हमने चुना भी तो क्या ? जो चीज हम हर चौराहे पर खोज सकते थे, उसको खोजने के लिए हमने महाकुंभ को चुना। इस अति विशेष अवसर को हम यूं ही व्यर्थ गंवा दिए। कुछ विद्वानों ने हमसे सम्वाद में मीडिया का दोष कहा लेकिन हम सबका भी उतना ही दोष क्योंकि हमने देखकर शेयर कर उसका टीआरपी बढ़ाया और इस अवसर को इतने तुच्छ चर्चा में गंवा दिया..जहां अध्यात्म चर्चा हो सकती थी ..जहां धर्म की चर्चा हो सकती थी जहां सनातन धर्म की चर्चा हो सकती थी। लेकिन सब शून्य होता जा रहा है।