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श्री राम ने जीत के बाद जल्द छोड़ दी थी लंका, जानिए क्या थी वजह

 

ब्यूरो रिपोर्ट सत्यम सिंह IBN NEWS अयोध्या

अयोध्या श्रीराम ने लंका जीतने के बाद रावण के छोटे भाई विभीषण का राजतिलक किया. रामजी की सहायता से राजपाट पाने के बाद विभीषण ने दोनों भाइयों से कुछ दिन और लंका में रुककर सेवा का अवसर मांगा, लेकिन श्रीराम ने विनम्रता से मना कर दिया तो विभीषण, सुग्रीव, हनुमान समेत वानर सेना के कई योद्धा श्रीराम, लक्ष्मणजी और सीताजी को छोड़ने पुष्पक विमान से अयोध्या आए. पौराणिक कथाओं के अनुसार लंका विजय के बाद रामजी ने रावण की लक्ष्मण को दी गई उस सीख का पालन किया, जिसमें मरने से पहले रावण ने कहा था कि शुभ कार्य में बिल्कुल देरी नहीं करनी चाहिए और अब रामजी का चौदह वर्ष का वनवास पूरा होने वाला था. उन्हें जल्द अयोध्या जाकर राजपाट संभालना था. ऐसे में इस शुभ कार्य में देरी और मां से मिलने में विलंब ठीक नहीं होगा.


रावण के धराशायी होने पर श्रीराम ने लक्ष्‍मणजी से कहा कि संसार से नीति, राजनीति और शक्ति का महान पंडित रावण विदा हो रहा है. ऐसे में तुम उनके पास जाओ और जीवन की कुछ ऐसी शिक्षा लो, जो और कोई नहीं दे सकता.
शुभस्य शीघ्रम: महापंडित रावण ने लक्ष्मण को बताया कि शुभ कार्य जितनी जल्दी हो, कर डालना चाहिए और अशुभ को जितना टाल सकते हो, टाल देना चाहिए यानी शुभस्य शीघ्रम.
शत्रु को कभी भी छोटा मत मानो: दशानन ने लक्ष्मणजी को दूसरी शिक्षा दी कि अपने प्रतिद्वंद्वी या शत्रु को कभी खुद से छोटा नहीं आंकना चाहिए. ऐसा कर मैंने भी अपने सर्वनाश को आमंत्रण दिया.
कोई भी तुच्छ नहीं: रावण ने लक्ष्मण को तीसरी सीख दी कि मैंने ब्रह्माजी से अमरता का वरदान मांगा था कि मनुष्य-वानर के सिवाय कोई भी मेरा वध न कर सके क्योंकि उन्हें मैं तुच्छ समझता था, यह मेरी भूल साबित हुई.

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