फरीदाबाद से बी.आर. मुराद की रिपोर्ट
फरीदाबाद: इस्लाम धर्म में रमजान का महीना विशेष महत्व रखता है। यह संयम, समर्पण और इबादत का महीना है, जिसमें मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा (उपवास) रखकर खुदा की बंदगी करते हैं। यह महीना आत्मसंयम, परहेजगारी (तकवा) और नेकी के रास्ते पर चलने की सीख देता है।
रोजे का महत्व और आत्मशुद्धि
ओल्ड फरीदाबाद के बिरयानी विक्रेता लल्लन कुरैशी ने बताया कि रमजान के दौरान की गई इबादत बेहद असरदार मानी जाती है। इस महीने में खान-पान और अन्य दुनियावी इच्छाओं पर संयम रखना जरूरी होता है, जिसे अरबी में “सोम” कहा जाता है। रोजा रखने से इंसान शारीरिक और आत्मिक (रूहानी) शुद्धि प्राप्त करता है।
गुनाहों से तौबा और नेकियों का इनाम
मौलाना एजाज के अनुसार, रमजान तौबा (पश्चाताप) करने और गुनाहों से दूर रहने का महीना है। इस दौरान लोग नेकी के कामों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं, क्योंकि इस महीने में की गई भलाई का कई गुना अधिक सवाब (पुण्य) मिलता है।
जकात और फित्रा का महत्व
ज़कात: अपनी कमाई का ढाई प्रतिशत हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों में बांटना इस्लाम में फर्ज माना गया है। इससे इंसान के माल और कारोबार में बरकत होती है।
फित्रा: ईद से पहले हर मुस्लिम को परिवार के प्रत्येक सदस्य के हिसाब से ढाई किलो गेहूं या उसकी कीमत जरूरतमंदों को दान करनी होती है, ताकि सभी लोग ईद की खुशियों में शामिल हो सकें।
रमजान के अनिवार्य कर्तव्य
इस्लाम धर्म में रोजा, जकात और हज तीनों फर्ज माने गए हैं। 12 साल से ऊपर के बालिग मुस्लिम रोजा रखना अपना धार्मिक कर्तव्य समझते हैं। रमजान न केवल इबादत का महीना है, बल्कि यह त्याग, परोपकार और सामाजिक समानता का संदेश भी देता है।
रमजान का यह पवित्र महीना इंसान को धैर्य, करुणा और भलाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है, जिससे समाज में आपसी भाईचारे और प्रेम का संचार होता है।