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डीएवी शताब्दी महाविद्यालय में नई शिक्षा नीति पर हुआ राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन

 

फरीदाबाद से बी.आर.मुराद की रिपोर्ट

फरीदाबाद:डीएवी शताब्दी महाविद्यालय में भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा प्रायोजित राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन आजादी के अमृत महोत्सव के तहत किया गया। इस सेमिनार का विषय’’ उच्चतर शिक्षण संस्थाओं में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लागू करने में चुनौतियां एवं अवसर’’रहा। इस सेमिनार का शुभारम्भ मां शारदा के समक्ष दीप प्रज्जवलित कर एवं डीएवी गान से हुआ।

सर्वप्रथम महाविद्यालय की कार्यवाहक प्राचार्या डॉ.सविता भगत ने सभी अतिथियों का महाविद्यालय के प्रांगण में आने पर हार्दिक स्वागत किया। डॉ.सविता भगत ने सेमिनार के विषय के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि नई शिक्षा नीति का उददेश्य मनुष्य का बौद्दिक,भावनात्मक और आध्यात्मिक विकास करना है। उन्होनें नई शिक्षा नीति को छात्रों के शैक्षिक विकास के साथ-साथ उनके कौशल और नैतिक गुणों के विकास में उपयोगी बताया।

सर्वे भवन्तु सुखिनः को शिक्षा का मूल उद्देश्य बताया। सेमिनार के उद्घाटन सत्र के विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद के पूर्व निर्देशक प्रो.जेएस.राजपूत जो भारत के एक प्रमुख शिक्षाविद हैं रहे। उन्हें 2015 में भारत सरकार के द्वारा पदम पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वह यूनेस्को सहित कई अंतराष्ट्रीय संगठनों से भी जुडे़ रहे है।

उनके अनुसार शिक्षा का अर्थ मनुष्य का समग्र एवं बहुआयामी विकास करना है।प्रो.जेएस.राजपूत ने कहा कि नई शिक्षा नीति में समय की आवश्यकता के अनुसार सब कुछ है।

उन्होंने मातृ भाषा पर जोर देते हुए कहा कि प्रत्येक विद्यार्थी के अन्दर नई शिक्षा नीति के तहत मौलिक चिंतन विकसित करने का प्रयास किया जाना चाहिए। उन्होंने बड़े-बड़े विद्ववानों जेआरडी.टाटा,अल्बर्ट, आईस्टीन,स्वामी विवेकानन्द, रवींद्रनाथ टैगोर का उदाहरण देते हुए कहा कि प्रत्येक विद्यार्थी यदि लक्ष्य को निपुणता के साथ अर्जित करने का प्रयास करे तो लक्ष्य निश्चित रुप से पूरा होता है।

उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि हरियाणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय, महेन्द्रगढ़ के कुलपति प्रो.टंकेश्वर कुमार ने बताया कि नई शिक्षा नीति को लागू करने में समय लग सकता है परन्तु प्रयास करके चुनौतियों को अवसरों में परिणत किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में भारतीयता है और हम अपनी मातृ भाषा के साथ ही विकास कर सकते है।

इस अवसर पर उन्होंने सभी को संविधान दिवस की बधाई भी दी।प्रो.बलवंत सिंह राजपूत,पूर्व कुलपति, हेमवती नन्दन बहुगुणा विश्वविद्यालय,उतराखण्ड,ने उदघाटन सत्र के मुख्य वक्ता के तौर पर कहा कि नई शिक्षा नीति में शिक्षा में हुए आमूल चूल परिवर्तन की बात कही गयी है जिसे प्रतिज्ञा और प्रतिबद्वता के साथ ही लागू किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति को सफलता पूर्व लागू करने का काम केवल शिक्षकों के द्वारा ही किया जा सकता है। उन्होंने नई शिक्षा नीति के क्रियान्वन पर ध्यान केन्द्रित करते हुए प्री नर्सरी से लेकर उच्च शिक्षा तक सीखने की पूरी रुप रेखा को सांझा किया। उन्होंने कहा कि प्राथमिक स्तर से लेकर अनुसंधान तक मातृ भाषा में ज्ञान प्रदान करना चाहिए।

अपने वक्तवय में उन्होंने भारत में शोध की गुणवत्ता को बढ़ाए जाने के लिए जोर देते हुए कहा कि शोध कार्यो में नवीनता लाई जानी चाहिए। उन्होंने नैतिक शिक्षा और लोक विद्या पर भी बल दिया। इस अवसर पर महाविद्यालय के वार्षिक जर्नल पेरियंथ का विशिष्ट अतिथियों के कर कमलों से विमोचन कराया गया। उद्घाटन सत्र के उपरान्त प्रथम तकनीकी सत्र में मुख्य वक्ता के रुप में विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित पूर्व मेजर जनरल राजन कोचर और स्वामी विवेकानंद सुभारती,विश्वविद्यालय,मेरठ, उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभागाध्यक्ष प्रो.अनोज राज उपस्थित रहे। पूर्व मेजर जनरल डॉ.राजन कोचर ने’’आत्मनिर्भर भारत’’विषय पर कहा कि अपने खुद के बॉस बनें और बदलाव लाए।

खुद को हुनरमंद बनाए। उन्होंने सभा में उपस्थित कुलपति महोदय से आग्रह करते हुए कहा कि प्रत्येक विश्वविद्यालय में रक्षा तकनीकी विभाग की स्थापना की जानी चाहिए जिससे हम छात्रों को आत्मनिर्भर बनाकर उनका ध्यान उद्यमिता की ओर केन्द्रित कर सके क्योंकि नई शिक्षा नीति छात्रों को कौशल विकास, उद्यमिताप्रद और रोजगारपरक शिक्षा देने की बात कहती है।

उन्होंने 12 वर्षीय छात्र कार्तिकेय झाकर की सफलता को भी सांझा किया। प्रो.अनोज राज ने ’’वोकेशनल कोर्सेज एंड रिसर्च’’ पर अपने बहुमूल्य विचार सांझा करते हुए कहा कि हमें देखना होगा कि वोकेशनल कोर्सेज कर पाठयक्रम कैसा हो और रिसर्च की क्वालिटी के साथ कोई समझौता न हो।

प्रथम तकनीकी सत्र के बाद’चॉइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम’मल्टीपल एंटी एंड कॉम्प्रिहेंसिव इवैलयूएशन सिस्टम’ विषयों पर पैनल चर्चा हुई। इस पैनल चर्चा में संचालक की भूमिका में पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के शिक्षा विभाग के प्रोफेसर कुलदीप पुरी रहे। प्रथम पैनलिस्ट प्रो हरजीत कौर भाटिया ने अपने विचार सांझा करते हुए कहा कि भारतीय शिक्षा की मानसिकता ऐसी है कि वे हमेशा कौशल को डिग्री से जोडते हैं।

लेकिन इस नई शिक्षा नीति ने शिक्षार्थियों को विषय के चयन में लचीलापन दिया है जिसमें चुनौतियों के साथ-साथ कई सुवसर भी हैं। द्वितीय पैनलिस्ट डॉ. शालिनी यादव वर्तमान में यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ एजुकेशन,गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर के रुप में कार्यरत हैं,ने कहा कि हम शानदार योजनाकार हैं लेकिन समस्या यह है कि हम इसे लागू करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि जीडीपी का कम से कम 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च किया जाना चाहिए लेकिन दुर्भाग्य से भारत इसमें से केवल 1 प्रतिशत तक ही पहुॅच पाया है। तृतीय पैनलिस्ट डॉ.मोना सेडवाल शिक्षा में प्रशिक्षण और व्यावसायिक विकास विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं और उन्होंने भी सीबीसीएस और सीसीई के बारे में अपना विश्लेषण दिया।तीनो पैनलिस्ट ने मुख्य विषय पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए उनसे जुड़े विभिन्न चुनौतियों पर चर्चा की तथा अंत में श्रोतागणों के प्रश्नोें के उत्तर देते हुए चर्चा को विराम दिया।

द्रितीय तकनीकी सत्र के चेयरपर्यन प्रो.कुलदीप पुरी रहे। इस सत्र में मुख्य वक्ता के रुप में दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग से प्रो.डॉस परिमला रही जिनका विषय आईडीपी. (संस्थागत विकास) योजना रहा।

दूसरे वक्ता कम्पयूटर और सूचना विभाग स्कूल इग्नू,नई दिल्लाी के पूर्व निर्देशक और कम्पयूटर विज्ञान विभाग से प्रो.वीवी. सुब्रमण्यम रहे और इनका विषय मूकस रहा। उन्होंने नई शिक्षा नीति में मूकस के माध्यम से शिक्षा के विभिन्न आयामों पर विस्तार से अपनी अभिव्यक्ति दी। प्रो. सुब्रमण्यम ने के द्वारा शुरु किए गए नये-नये कोर्सो के साथ-साथ अर्पित कोर्स की भी जानकारी प्रदान की।

उन्होेंने सांख्यिकी आंकड़ों की सहायता से ओपन ऑन लाईन कोर्सेज की महत्ता बताई। समापन सत्र के विशिष्ट अतिथि एनआईएफएम. फरीदाबाद से सार्वजनिक वित्त और अर्थशास्त्र,विभाग के प्रोफेसर ऐके.शरण रहें। प्रो.एके. शरन ने कहा कि परिवर्तन शास्वत है और इस परिवर्तन को अपनाने में सबसे अधिक चुनौती का सामना शिक्षकों को करना पड़ सकता हैं परन्तु सम्रग प्रयास के द्वारा चुनौतियों को अवसरों में बदला जा सकता हैं।

उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति को लागू करना अपने आप में अत्यन्त चुनौति पूर्ण कार्य है और इस नीति को सफलता पूर्वक अमल में लाने के लिए उच्च शिक्षण संस्थानो को मिलकर प्रयास करना पडे़गा।

इस सत्र का मुख्य आकर्षण राष्टीय शिक्षा नीति 2020 को लागू करने में आने वाली संभावित परेशानियों की चर्चा रहा। सेमिनार के समापन सत्र की अध्यक्षता कर रहे डीएवी. प्रबन्धक समिति के कोषाध्यक्ष डॉ.डीवी सेठी ने कहा कि नई शिक्षा नीति 2020 को सभी शिक्षकों को विस्तार से पढ़नी चाहिए और सेमिनार में उपस्थिति सभी बुद्विजीवियों के द्वारा दिए गए सुझावों पर अमल करना चाहिए।

उन्होंने सबसे पहले सभी को मनुष्य बनने की सलाह दी। उन्होंने महाविद्यालय की
प्राचार्या डा.सविता भगत की तारीफ की एवं कहा कि जैसे एक स्पोर्टस टीम में 11 खिलाडी होते हैं ठीक उसी प्रकार सविता भगत ने भी खिलाड़ियों के रुप में एक से उत्तम एक 11 वक्तओं को चुन कर इस सेमिनार में प्रस्तुत किया है। इस सेमिनार में उतराखंड, यूपी,हिमाचल प्रदेश,राजस्थान, दिल्ली और हरियाणा के विभिन्न्न हिस्सों से तकरीबन सौ से भी अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।

फरीदाबाद के शहर के आस पास के उच्च शिक्षण संस्थानों से शिक्षकों और प्राचार्या ने सेमिनार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इस कार्यक्रम का प्रसारण यूटयूब फेसबुक एवं जूम के माध्यम से भी किया।‌ प्रो.मुकेश बंसल ने एक दिवसीय संगोष्ठी की रुपरेखा प्रस्तुत की। अंत में धन्यवाद ज्ञापन डॉ.अर्चना सिंघल ने किया। कार्यक्रम के संयोजक मुकेश बंसल तथा डॉ.अर्चना सिंघल रही।

जबकि सेमिनार के आयोजन सचिव ललिता ढींगरा, अंकिता मोहिंद्रा,प्रीति झा,तथा किरण कालिया रहीं। आयोजन टीम में बिंदु रॉय,सोनिया भाटिया, डा.रश्मि एवं ईएच.अंसारी शामिल रहे। इस कार्यक्रम का मंच संचालन अंकिता मोहिंद्रा ने किया।

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