फरीदाबाद – पत्रकार पूजा तिवारी आत्महत्या मामले में 9 साल बाद अदालत का फैसला आया है। अडिशनल सेशन जज एस.के. शर्मा की अदालत ने हरियाणा पुलिस इंस्पेक्टर अमित कुमार को बरी कर दिया
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि एफआईआर और सुसाइड नोट में आरोपी का नाम नहीं था और क्राइम सीन रिक्रिएट में भी आरोपी की संलिप्तता नहीं पाई गई।
मुकदमे का पूरा घटनाक्रम
इंदौर की चर्चित पत्रकार पूजा तिवारी (27) की आत्महत्या का यह मामला हाई-प्रोफाइल रहा।
अमित कुमार के वकील ने कोर्ट में तर्क दिया कि उनका नाम एफआईआर और सुसाइड नोट में नहीं था, इसके बावजूद उन्हें गलत तरीके से फंसाया गया।
बचाव पक्ष ने यह भी बताया कि क्राइम सीन रिक्रिएशन में इंस्पेक्टर अमित कुमार की कोई भूमिका नहीं पाई गई।
वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल भारद्वाज, एडवोकेट दीपक पालीवाल, एडवोकेट विकल्प मिश्रा, एडवोकेट दुष्यंत शर्मा और एडवोकेट प्रिया ने अदालत में बचाव पक्ष की पैरवी की।
पीड़िता के पिता का बयान
मृतका के पिता रवि तिवारी ने फैसले पर असंतोष जताया और कहा कि “केस को जानबूझकर लटकाया गया, जिससे उनकी बेटी को न्याय नहीं मिल सका।”
पूजा तिवारी ने डॉक्टरों के खिलाफ किया था स्टिंग ऑपरेशन
वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल भारद्वाज ने बताया कि पत्रकार पूजा तिवारी ने डॉक्टरों के खिलाफ एक स्टिंग ऑपरेशन किया था, जिसे न प्रसारित करने का दबाव डाला जा रहा था।
इसके बाद उन पर ब्लैकमेलिंग के आरोप में केस दर्ज कराया गया, जिससे वे मानसिक रूप से परेशान हो गईं।
अपने सुसाइड नोट में भी उन्होंने इसी केस का जिक्र किया था।
एफएसएल रिपोर्ट और अन्य आरोपों पर कोर्ट का फैसला
एफएसएल रिपोर्ट में सुसाइड नोट को वास्तविक पाया गया।
मृतका के पिता द्वारा दर्ज शिकायत में अन्य डॉक्टरों के नाम भी थे, लेकिन अदालत में अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सहमत नहीं हुआ।
इंस्पेक्टर अमित कुमार के खिलाफ कोई ठोस सबूत पेश नहीं किए जा सके, जिसके आधार पर उन्हें बरी कर दिया गया।
कोर्ट का निष्कर्ष
अदालत ने पाया कि अमित कुमार को बिना ठोस आधार के आरोपी बनाया गया था। इसी कारण कोर्ट ने उन्हें आरोपों से मुक्त कर दिया। इस फैसले के बाद एक बार फिर मामले की निष्पक्ष जांच और न्याय प्रक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं।