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फरीदाबाद – औद्योगिक नगरी नहीं ‘गोलियों की नगरी’ बोलिए जनाब

फरीदाबाद से बी. आर. मुराद की रिपोर्ट
फरीदाबाद : दीपावली के करीब आते ही प्रदेश में आतिशबाजी शुरू हो चुकी है, लेकिन आपको सुनकर हैरानी होगी कि ये अतिशबाजी पटाखों की नहीं बल्कि गोलियों की हो रही है। जी हां, आपने बिलकुल सही सुना आजकल शहर में जहां देखों वहीं गोलियां चल रही है और पुलिस महकमा मुकदर्शक बना तमाशा देख रहा है। आपको बता दें, सोमवार को फरीदाबाद के सिविल अस्पताल से दिनदहाड़े हवाई फायरिंग करते हुए बदमाश कैदी को लेकर गायब हो गए लेकिन पुलिस अभी तक उनका कोई सुराग तक नहीं लगा पाई है।
वहीं मंगलवार को सैक्टर-22 के डाकघर में बदमाश कैशियर को गोली मारकर 2 से ढाई लाख की रकम लेकर रफ्फू-चक्कर हो गए। इतना ही नहीं फरीदाबाद के साथ लगते पलवल के पेट्रोल पम्प पर पैसे मांगने पर गोली चलाना। वहीं सैक्टर-25 के इंडस्ट्रीयल एरिया में बदमाशों और पुलिस के बीच 12-13 राऊंड हुई फायरिंग का खेल देखने को मिला। आखिर, सोचने वाली बात है कि किस तरह की सुरक्षा फरीदाबाद के लोगों को मुहैया कराई जा रही है। चुनाव के निकट आने के बावजूद भी अपराध का ऐसा बेखौफ खेल क्या भाजपा की दिक्कते बढ़ाने वाला है। विपक्ष इस मुद्दे को कब और कैसे भुनाती है ये देखना अभी बाकी है। लेकिन सत्ता पक्ष से इस मामलों पर अभी तक किसी बड़े नेता का कोई बयान सामने नहीं आया है। सूत्रों ने बताया कि भाजपा के नेता पार्टी के बड़े नेताओं से नाखुस है क्योंकि उन्हे लोगों को जवाब देना भारी पड़ रहा है। जिससे पार्टी के नेताओं के बीच नाराजी पन्न रही है, क्या इसका असर आगामी चुनाव में देखने को मिलेगा। अब सवाल यह उठता है कि प्रदेश में लॉयन ऑर्डर को कायम रखने वाली पुलिस क्या कर रही है। फरीदाबाद जिले में तत्कालीन पुलिस कमीशनर हनीफ कुरैशी से लेकर अमिताभ ढि़ल्लों तक का कार्यकाल देखा जाए तो बदमाशों ने गोलियों से खून की होली खेली है। कुछ स्थानों पर आपसी रंजिश के चलते गोलियां चली, तो कहीं जातिवाद को बढ़ावा मिला। इतने पर बात नहीं रूकी और रेप के अनगिनत मामले सामने आए। ऐसे में कानून व्यवस्था को बनाए रखने वाले पुलिस अधिकारी एसी के बंद कमरों में क्या रणनीति बनाने में लगे हुए है। फरीदाबाद में पुलिस कमीशनर रहे सुभाष यादव के कार्यकाल में अपराधियों ने अपराध करना छोड़ दिया था और कुछ कुख्यात अपराधी एरिया छोडक़र चले गए थे।
ऐसा क्या था जो सुभाष यादव ही कर पाए बाकी पुलिस अधिकारियों से अपराध पर अंकुश लगाने में कौन सी कठिनाई सामने आ रही है। बहरहाल, अधिकारियों पर इस क्राईम के बढ़ते ग्राफ का फर्क भले ही न पड़ता हो, परन्तु प्रदेश की भाजपा सरकार के लिए मुश्किले बढ़ गई है। इन घटनाओं से विपक्ष को सरकार को घेरने का मौका मिल गया है।

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