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मिर्जापुर – पुरुष बली नहीं होत है, समय होत बलवान : समय के मारे ये बेचारे

मिर्जापुर । ‘का नहिं अबला करि सके का नहिं सिंधु समाय, का नहिं पावक जारि सके का नहिं कालहिं खाय’ चौपाई में गोस्वामी तुलसीदास ने अबला (स्त्री), समुद्र, अग्नि के साथ सबसे अंत में बलवान समय को माना है । इसका जीता-जागता उदाहरण नगर की सड़कों पर दिखाई पड़ता है ।
नगर के मध्य त्रिमोहनी मुहल्ले में आनन्द यादव नामक 35 वर्ष का युवक समय के दुष्प्रभाव की चपेट में आ गया है । गऊघाट के अच्छे खासे परिवार के आनन्द के साथ क्या हुआ कि इन दिनों वह त्रिमोहनी पर दिन-रात दिखता है कुछ न कुछ बोलते हुए । लोग इसका जो भी अर्थ लगाते हों लेकिन आनन्द जो काम कर जा रहा है, वह अच्छे खासे पढ़े-लिखे और दिमागदार लोग नहीं कर पाते हैं ।
गड्ढा पाट दिया

अभी कुछ ही माह पहले त्रिमोहनी में गणेश-भैरो जी मन्दिर के पास बीचोबीच अंडग्राउंड पाइप लाइन फट गया । अंदर अंदर पानी बहने से बड़ा सा गड्ढा लो गया । लोग बाग एक दूसरे का मुंह ताकते रहे और आनन्द मिट्टी-गोबर से उसे पाट दिया । इसी के साथ त्रिमोहनी पर गाय के गोबर उठाने, हटाने, गन्दगी साफ करने का जैसे धुन ही सवार हो गया है उस पर ।
बासी-तिबासी खाद्यवस्तु देते हैं लोग

आनन्द को कभी किसी के आगे हाथ पसारे नहीं देखा जाता । अलबत्ता कुछ लोग जब खाद्य वस्तु अपनी गुणवत्ता खोने लगती हैं, उसमें बदबू आने लगती है, तब ऐसे लोगों को आनन्द की याद आती है ।
छेदी और मिट्ठू की कहानी

लगभग 55-60 साल के पूर्णतया अशक्त छेदी पर अंतर्मन से सच्चे किसी समाजसेवी की नजर पड़ जाए तो उसका कुछ भला हो सकता है । देखने में लगता है कि छेदी पूर्णत: अनपढ़ हैं । लेकिन बात कुरेदने पर भाषा-बोली से ज्ञान का पुट झलकता है । छेदी से पूछा कि घर पर कौन है और किसने यह हालत बनाई तो रोने के बजाय छेदी मुस्कुराते हुए बोले- पुरूष बली नहीं होत है, समय होत बलवान । इससे आगे छेदी को किसी से कोई शिकायत नहीं । छेदी का कहना है-किसी ने जो दिया वह खा लिया । शरीर जवाब दे गया है ।
पक्काघाट पर लगभग 60 वर्ष के मिट्ठू भी कथरी-चटाई लेकर दाऊजीघाट के सामने एक मन्दिर के आगे खुले आसमान में जाड़ा-गर्मी-बरसात गुजारते हैं ।
कथित सामाजिक संस्थानों में चलता है दारू का दौर ?

सेवा करने के लिए नजरिए की जरूरत है न कि भारी भरकम मंच और बड़े बड़े अतिथि और मुख्य अतिथि की । ये तीन ही नहीं तकरीबन 30 लोग इस तरह के अशक्त नगर की सड़कों पर लम्बे अरसे से मारे मारे फिरते दिख रहे हैं लेकिन इनकी खोज खबर लेने कोई नहीं आगे आया ।
दिसम्बर से फरवरी होता है कम्बल युग

जाड़े ने दस्तक दे दी है । 24 नवम्बर से हेमंत ऋतु का आगमन हो जाएगा । शुरू हो जाएगा एक झटके में रेशा रेशा अलग थलग हो जाने वाले कम्बल वितरण का दौर । कोई कोई तो तौल के हिसाब से फोम का कम्बल बांटने की डुगडुगी पीटेंगे, जो नुकसान पहुंचाता है स्वास्थ्य को ।
प्रचार भी सर्जिकल अटैक की तरह होता है

कम्बल युग में एक कम्बल को सात-आठ लोग एक साथ थाम कर किसी झुर्रीदार व्यक्ति के उद्धारक के रुप में प्रकट होंगे । इनके चित्र आदि का दर्शन पाकर बहुतेरे कोसते भी नजर आएंगे ।

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