चलो सत्य की ओर–
भारत एक गुलाम देश था। गुलाम मुंगलों तथा अंग्रेजों के हाथ रहा था। उस समय के भारतीय लोगों के सामने एक ही सबाल था,भारत की आजादी के अलावा कोई भी समस्या नहीं थी। आज हमारे सामने अनेक समस्याओं का जखीरा मुँह फैलाये खड़ा हैं। आज का नौजवान जाति बेरोजगारी से परेशान है। किसान कृषि उपज का मूल्य न मिलने का घरेलू समस्याएँ तथा कृषि ऋण के कारण आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाता है। नोटबंदी और जीएसटी के कारण छोटा व्यापारी तथा किसान परेशान होने के कारण मजदूर को मजदूरी नहीं मिलने से घर समस्या के कारण मौत को गले लगा रहे है। बच्चों को अच्छी शिक्षा के कारण नौकरी नहीं मिल पाने से आत्महत्या कर रहे है।
देश के नेता यह कहकर जनता को गुमराह करते हैं। कि सामान्य जातियों के बच्चों को आरक्षण की बजह से नौकरी नहीं मिल पा रही है। जबकि ऐसा नहीं है। सामान्य की मैरिट अलग बनती है। आरक्षण वर्ग की मैरिट अलग बनती है। एक दूसरे की मैरिट कम बढ़ हो सकती है। लेकिन जो सामान्य श्रेणी की सीट आरक्षित से नहीं भर सकते और आरक्षित श्रेणी की सीट सामान्य से नहीं भर सकते हैं। फिर भी झगड़ा है। इस झगड़े को ही राजनीति कहते है। सामान्य की संख्या कम होने के बाबजूद सीट अधिक होती है। लेकिन उन्हें दर्द नहीं होता है। दर्द सामान्य को ही होता है। इसे अलगाव कहते है। भारत के लोगों को आपस में न लडकर सरकार से लड़ना चाहिए। जो आज का नौजवान नहीं लडता हैं। आज के नौजवान को भगतसिंह चंद्रशेखर आजाद उधमसिहं और डा0अंबेडकर जैसा निष्पक्ष बनकर सत्ता की लड़ाई दूसरे के लिए नहीं अपने लिए लड़नी होगी। जैसा भारत को गुलामी से आजाद कराने के लिए हमारे पूरबजों ने लड़ाई लड़ी। जब तक हम ऐसा नहीं कर सकते तबतक यह नेता और अधिकारी चाहे किसी भी जाति के हो समाज और जनता का भला नहीं हो सकता।
विजय कुमार शर्मा की कलम से