सांस्कृतिक केवल एक भाषा नहीं अपितु भारतीय संस्कृत की आत्मा है
संस्कृत है तो भारतीय संस्कार हैं । वरना भारतीय निष्प्राण , निर्गुण ,निरलंकार तथा ज्ञानहीन है।
उपरोक्त बातें उस समय मेरे मुख से सहसा निकल पड़े। जब मुझे संस्कृत भारती कार्यक्रम मे संस्कृत संवर्धन हेतु संबोधन कर रहा था। इस अवसर पर बगहा के वर्तमान वीडियो श्री अभय शंकर मिश्र ने संस्कृत संवर्धन में मेरे योगदान के लिए मुझे प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित। किया संबोधन के क्रम में मेरे मुंह से यह उद्घाटित हुआ कि भारत के रग-रग में संस्कृत के संस्कार परिलक्षित होते हैं। संस्कृत से मिलने वाले विनम्र संस्कार ही भारतीय परिवारों व समाजों को एकता के बंधन में पिरोहे रखा है। ” विद्या ददाति विनयम्” संस्कृत का मूल भाव है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संस्कृत का मूल संदेश है वसुधैव कुटुंबकम्। भाषा संप्रेषण के संबंध में इसका मूल भाव है सत्यम ब्रूयात प्रियं ब्रूयात न ब्रूयात सत्यम अप्रियम। व्यवहारिक दृष्टि में इसका मूल मंत्र है मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्टवत् आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति स पंडितः । अंत में इस तरह का समरस और सुयोग्य भाव तथा ज्ञान के भंडार संस्कृत के सिवा किसी दूसरी भाषा में नहीं मिल सकते हैं। यह अंतर्मन को खोल देने वाली और नर को नारायण से मिलाने वाली एवं मुक्ति का पाठ पढ़ाने वाली एक भाषा है। इसीलिए संस्कृत अमूल्य है और जीवन ग्राह्य भी। आइए प्रकृति व संस्कृति संरक्षक संस्कृत के संवर्धन हेतु एक कदम अवश्य बढ़ाएं। संस्कृतभारती के सयोजक व साधु स्वभाव रखने वाले देव निरंजन जी को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दें ।
“जयतु संस्कृतम्”
रिपोर्ट विजय कुमार शर्मा ibn24x7news बिहार
Tags बिहार
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